रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३५८ वां* सार -संक्षेप
उठो जागो जगाओ वंश को शुभ ब्रह्मवेला में,
जवानी सुप्त क्योंकर है पड़ी पशुवत् तबेला में?
हुए उपदेश अबतक जो वही काफी सुनाने को
न दो उपदेश लेकर तेग जूझो जग-झमेला में।
------ ओम शङ्कर
इस कविता के माध्यम से आचार्य जी हमें संकेत कर रहे हैं ब्रह्ममुहूर्त में उठने का, जागने का और अपने राष्ट्रभक्त समाज को जगाने का। यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आह्वान है
युवावस्था जो ऊर्जा, चेतना और निर्माण की अवस्था है वह पशुओं की तरह निद्रा, जड़ता और केवल भोग में न पड़ी रही यह हम युवाओं को आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती है।हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है हमें मनुष्यत्व की अनुभूति करनी चाहिए हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः हमारा लक्ष्य है
अब केवल शब्दों से नहीं, कर्म से परिवर्तन लाना है।
केवल उपदेश देने की नहीं, बल्कि शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करने की आवश्यकता है जब हम स्वयं इस प्रकार का कार्य व्यवहार आरम्भ कर देंगे तो हमारा आत्मबोध जाग्रत होगा ही हम शक्ति शौर्य पराक्रम विश्वास से भर जाएंगे हमें सन्मार्ग मिल जाएगा चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की हम अनुभूति करते हैं तो हमें तर्क वितर्क से दूर होते हुए अपने हिन्दू धर्म जो अगणित मानवों के हृदय जीतने का हमें हौसला देता है के प्रति आग्रही विश्वास होना चाहिए
हम अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानें
मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार–क्षार।
डमरू की वह प्रलय–ध्वनि हूँ, जिसमे नचता भीषण संहार।
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मै दुर्गा का उन्मत्त हास।
मै यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँआधार।
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूँ मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय!
हमें अपने आर्ष ग्रंथों के प्रति पूर्ण श्रद्धा का भाव रखना होगा भावी पीढ़ी को डिगने से बचाने के लिए उसे भी प्रेरित करें अपने सनातन धर्म के प्रति अपने आर्ष ग्रंथों के प्रति उसका भी श्रद्धा का भाव रहे अनेक विकल्पों से भरी अपनी सनातन जीवनशैली को अपनाने की आवश्यकता है खाद्याखाद्य विवेक का ध्यान दें
इसके अतिरिक्त तुलसीदास के जीवन से हमें क्या सीखना चाहिए भैया अनिल महाजन का उल्लेख क्यों हुआ मेरा साबुन बेहतर है से क्या आशय है युगभारती के कार्यक्रम करते समय क्या ध्यान देने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें