ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।5.22।।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३५९ वां* सार -संक्षेप
अपने व्यावहारिक कार्यों को करते हुए निःस्पृह भाव से बिना लिप्त हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय सद्संगति में रत होने का प्रयास करें ताकि हमारा मनुष्यत्व जाग्रत हो सके आत्मशक्ति की अनुभूति हो सके
आत्म का अनुभव हो सके यही आत्म मूलतत्त्व है यह अनुभूति जितनी गहन होगी उतनी ही शक्ति का प्रादुर्भाव होगा अपने अन्दर के भाव जगत् को पहचानना विशिष्ट है यह आत्म का ज्ञान अद्भुत है
ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान्कामांश्छन्दतः प्रार्थयस्व।
इमा रामाः सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः।
आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व नचिकेतो मरणं माऽनुप्राक्शीः ॥
जिन-जिन कामनाओं को पूर्ण करना मर्त्यलोक में दुर्लभ है, उन सभी कामनाओं को तुम सहर्ष माँग लो। देखो! अपने रथों एवं वाद्यों सहित ये मनोहारिणी रमणीयां हैं, मनुष्यों के लिए इस प्रकार की रमणीयां अलभ्य हैं, मैं इन्हें तुम्हें दूँगा। इनके साथ सुख सें रहो। किन्तु, मृत्यु के विषय में प्रश्न मत करो।
*कठोपनिषद्* का यह श्लोक यमराज द्वारा नचिकेता से उस समय कहा गया है, जब वे उसे मोक्ष के ज्ञान से हटाकर सांसारिक भोगों की ओर मोहित करना चाहते हैं
*नचिकेता*, यमराज से *मृत्यु के रहस्य*, *आत्मा*, और *मोक्ष* का ज्ञान मांगता है। यमराज उसकी परीक्षा लेना चाहते हैं — क्या वह वास्तव में ज्ञान का जिज्ञासु है या केवल बाल-हठ में प्रश्न कर रहा है?
किन्तु नचिकेता अडिग रहता है
श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत्सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।
अपि सर्वं जीवितमल्पमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥
हे अन्त करने वाले देव!मर्त्य मनुष्य के ये सब भोग पदार्थ कल तक ही रहने वाले हैं, ये सब इन्द्रियों की आतुरता तथा उनके तेज को जीर्णशीर्णं कर देते हैं, सम्पूर्ण जीवन भी स्वल्प मात्र ही है।
इसके अतिरिक्त गेहूं की समस्या की चर्चा क्यों हुई भैया अजय कृष्ण जी भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें