प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६० वां* सार -संक्षेप
ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिनके लिए नित्य हम प्रतीक्षारत रहते हैं आइये प्रवेश करें आज की वेला में और संसार से कुछ क्षणों के लिए विरत रहने का प्रयास करें ताकि संसार से हम इतने व्यामोहित न हो जाएं कि हमारा विवेक ही नष्टप्राय हो जाए
संसार बुरा नहीं है
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥
*"संसार सत्य नहीं है, सत्य प्रतीत होता है"* — यह अद्वैत वेदांत, उपनिषदों और योग-दर्शन की अत्यंत गूढ़ और सारगर्भित शिक्षा का साक्षात् प्रतिबिंब है।
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या- संसार माया के कारण हमें वास्तविक लगता है माया *सच्चिदानंद ब्रह्म* पर अविद्या का आवरण डाल देती है, जिससे हम बदलते हुए को स्थायी मानने लगते हैं अतः हम संसार को एक नाटक समझें जिससे हमें शान्ति मिले हम मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाले भाव की अनुभूति करें जो हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है
मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे । न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ll.
अपने चिन्मय स्वरूप की अनुभूति करें
और इस अनुभूति के लिए एक सरल उपाय यह है कि हम जागरण शयन खानपान सद्संगति अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन पर ध्यान दें परनिन्दा परस्तुति से बोझिल न हों
प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू। जौं मो पर प्रसन्न प्रभु अहहू॥
राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥ को आचार्य जी ने कैसे स्पष्ट किया (भैया आदर्श पुरवार जी का प्रश्न ),संतत्व शक्ति से भरपूर है या अशक्त, भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें