20.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६१ वां* सार -संक्षेप

 मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतेषु यःपश्यति स पण्डितः।। 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६१ वां* सार -संक्षेप


अनेक भौतिक प्रपंचों में फंसे रहने के बाद भी आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय हमें प्रेरित करने के लिए देते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

हमारे ज्ञानियों ने जो सूक्ष्म अध्ययन किया और उसे प्रस्तुत किया उसका उद्देश्य यही था कि हम उस अद्भुत चिन्तन को समझकर संसार और संसारेतर सारे के सारे तत्त्व को समझ जाएंगे किन्तु भ्रमित होने के कारण हम उस ज्ञान के प्रति आस्था नहीं रख पाए अतः आवश्यक है कि हम यह ज्ञान प्राप्त करें हम इसकी उपेक्षा न करें यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है

प्रपंचों से मुक्त होकर चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों परस्पर का संवाद करें शिक्षा और शिक्षक पर  विस्तार से चर्चा करें

उपनिषद् गीता मानस सभी महत्त्वपूर्ण हैं  इनका अध्ययन करें


अन्नं बहु कुर्वीत। तद् व्रतम्‌। पृथिवी वा अन्नम्। आकाशोऽन्नादः। पृथिव्यामाकाशः प्रतिष्ठितः।

आकाशे पृथिवी प्रतिष्ठिता।तदेतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितम्‌।स य एतदन्नमन्ने प्रतिष्ठितं वेद प्रतितिष्ठति। अन्नवानन्नादो भवति। महान्भवति प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन। महान् कीर्त्या॥


यह *तैत्तिरीयोपनिषद्* के *भृगुवल्ली* खंड से लिया गया है और यह *"अन्नमय कोष"* (अन्नमय शरीर) की महिमा को वर्णित करता है। यह अन्न (अर्थात् भोजन) के महत्व को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों दृष्टियों से स्पष्ट करता है।


तुम अन्न की वृद्धि और अन्न का संचय करोगे क्योंकि वह भी तुम्हारे श्रम का व्रत है। वस्तुतः पृथ्वी भी अन्न है और आकाश अन्न का भोक्ता है। आकाश पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है तथा पृथ्वी आकाश पर । यहाँ भी अन्न पर अन्न प्रतिष्ठित है। जो अन्न पर प्रतिष्ठित इस अन्न को जानता है, स्वयं दृढ़ रूप से प्रतिष्ठित हो जाता है। वह अन्न का स्वामी  एवं अन्न का भोक्ता बन जाता है, वह सन्तति से, पशु-धन से, ब्रह्मतेज से महान् हो जाता है, वह कीर्ति से महान् बन जाता है।

जिसकी कीर्ति होती है वही जीवित है कीर्तिविहीन तो मृत है

स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति

संसार में रहकर आप सम्पन्न रहें

सब कुछ अन्नमय है अर्थात् प्राणमय है और प्राण परमात्मा है

अपना द्वार  स्वयं साफ करने से क्या तात्पर्य है  अन्न की चर्चा में नेहरू जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें