3.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  3 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४४ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम जाग्रत उत्थित प्रेरित हों  संसार के स्वरूप को  हम जानें  सांसारिक समस्याओं से व्यथित न होने के लिए अपने मानस को उत्साहित करें जिसके लिए चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन आवश्यक है 

अद्भुत है यह आचार्य जी का सदाचार संप्रेषण जो उनका एक परिस्थिति- निरपेक्ष कार्य है

आचार्य जी स्पष्ट करते हैं कि 

संगठन का अर्थ मात्र एकत्रीकरण नहीं है प्रेम और आत्मीयता का आधार लेकर एक दूसरे के सुख दुःख के साथ संयुत रहना और किसी लक्ष्य के मार्ग पर अपने पग बढ़ाना संगठन के वास्तविक स्वरूप को दर्शाता है 

जैसे हमारा लक्ष्य है

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ||


 वयं राष्ट्रे जागृयाम

हम हिन्दू अपने राष्ट्र के उत्थान और जागरूकता के लिए कार्य करें और इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी तन्द्रा दूर करनी होगी फिर संकल्प लें लक्ष्य निर्धारण करें 

परिस्थितियां विषम हैं गहरा अंधेरा छाया हुआ है बुद्धियां विकृत प्रतीत हो रही हैं स्वार्थ का बोलबाला है सब विलास में मस्त हैं ऐसे में हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी 

आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई जो जागृति का संदेश दे रही है 


यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)


इसके अतिरिक्त भैया पुनीत जी कौन सा मेला देखना चाहते थे भैया पुरुषोत्तम जी भैया यशोवर्धन जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें