आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६२ वां* सार -संक्षेप
भारतीय संस्कृति और दर्शन को जिसमें एक गहरी, *समयातीत और चिरंतन विशेषता* है,विकृत शिक्षा के माध्यम से हमारे मन मस्तिष्क को आक्रांत कर अंग्रेजों ने महत्त्वहीन और तुच्छ बताया हम इसके वैशिष्ट्य को स्वयं इसे जानें और *भावी पीढ़ी* को भी इससे अवगत कराएं
भारतीय दर्शन जीवन को केवल *एक जन्म की यात्रा नहीं* मानता, बल्कि यह *अनेक जन्मों की सतत प्रक्रिया* मानता है, जिसका उद्देश्य *आत्मा की पूर्णता* और *मोक्ष* की प्राप्ति है।
हमारे *वर्तमान गुण, स्वभाव, संस्कार* — सब कुछ पूर्व जन्म के कर्मों का ही परिणाम हैं। हमारे वर्तमान जीवन के *विचार, व्यवहार और व्रत* यह तय करते हैं कि *आगामी जन्म किस प्रकार का होगा।*- यह जन्म एक *अवसर* है — *आत्मा के विकास का, ज्ञान और भक्ति के मार्ग का।*
तो आइये इस अवसर का लाभ उठाएं
जब हमें विश्वास होता है कि जो करता है परमात्मा ही करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है तो परमात्मा ही हमें प्रेरित करता है कि हम संघर्ष करें
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।
(कृष्ण का जीवन दर्शन)
परमात्मा ही प्रेरित करता है कि दुष्टों को पराजित करने के लिए हम उन आत्मीय लोगों को कर्म में प्रवृत्त करते हुए संगठित करेंगे जो अपनी शक्तियों क्षमताओं को पहचान नहीं रहे हैं
(राम का जीवन दर्शन )
और वही प्रेरित करता है कि हम अपने तत्त्व शक्ति के बोध से प्रलय भी ला सकते हैं (शिव का दर्शन )
यह आत्मबोध शक्ति उत्पन्न करता है
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।
जिसके सारे कार्य कामना और संकल्प से रहित हैं, ऐसे उस ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा भस्म हुए कर्मों वाले व्यक्ति को ज्ञानीजन पण्डित कहते हैं।।
आचार्य जी ने अधिक से अधिक हमारे अनुकूल जीवनियां पढ़ने का परामर्श दिया ताकि हमें उन महापुरुषों के जीवन में घटित उतार चढ़ाव भी समझ में आ सकें महर्षि रमण की जीवनी हम पढ़ सकते हैं
महर्षि रमण (30 दिसंबर 1879 – 14 अप्रैल 1950) 20वीं शताब्दी के एक महान् भारतीय संत और आत्मज्ञान के अद्वैत वेदांत परंपरा के प्रमुख आचार्य थे। उनका जीवन और शिक्षाएँ आत्म-अन्वेषण, मौन और आत्मा की शुद्ध अनुभूति पर केंद्रित थीं।
🧘♂️ जीवन परिचय
- *जन्म*: वेंकटरमण अय्यर के रूप में तमिलनाडु के तिरुचुली गाँव में।
- *आध्यात्मिक जागृति*: 16 वर्ष की आयु में मृत्यु के गहन अनुभव के बाद आत्मा की शाश्वतता का साक्षात्कार हुआ।
- *अरुणाचल पर्वत*: इस अनुभव के पश्चात् वे तिरुवन्नामलै स्थित अरुणाचल पर्वत पर चले गए, जहाँ उन्होंने शेष जीवन तपस्या और साधना में बिताया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया किसी भी विषम परिस्थिति के आने पर हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें