मौनान्मूकः प्रवचनपटुश्चाटुलो जल्पको वा
धृष्टः पार्श्वे वसति च तदा दूरतश्चाप्रगल्भः ।
क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजातः
सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६३ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने विकारों को दूर करें, सदाचारमय विचार ग्रहण करें और कर्मानुरागी बनें
सदाचारमय विचारों के लाभ अत्यंत गहन और व्यापक हैं ये जीवन को सम्पूर्ण रूप से *सकारात्मक दिशा* देते हैं।सदाचारमय विचार जीवन की सफलता, शांति और उन्नति का मूल हैं।
आचार्य जी कहते हैं कि अध्यात्म को यदि केवल आत्म-कल्याण तक सीमित कर दिया जाए और उसमें समाज व राष्ट्र का हित परिलक्षित न होता हो तो वह वास्तविक अध्यात्म नहीं कहलाएगा। वास्तविक अध्यात्म वही है जिसे आचार्य जी *शौर्य प्रमंडित अध्यात्म* कहते हैं जिसमें समाज का हित राष्ट्र का हित दृष्टिगोचर हो
तो आइये व्यक्तिगत कार्यों को करते हुए अत्यधिक भौतिकता में फंसे रहने के बाद भी हम *समाजोन्मुखी* होने और *राष्ट्र के प्रति निष्ठावान्* होने का संकल्प लें
तुलसीदास जी कृत मानस सभी को संतुष्ट करती है जिसे उन्होंने विषम परिस्थितियों में रचा
*गोस्वामी तुलसीदास* जी ने *रामचरितमानस* की रचना *अकबर के शासनकाल* (16वीं शताब्दी) में की थी और यह वह समय था जब भारत में *धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर अनेक विषम परिस्थितियाँ* विद्यमान थीं।
हिन्दू समाज में मूर्ति पूजा, वेद, पुराण और सगुण भक्ति पर प्रश्न उठाए जा रहे थे। इस्लामी शासन में सनातन धार्मिक परंपराओं पर दबाव था जातिवाद, अंधविश्वास, और आडंबर समाज में व्याप्त थे। शिक्षा का अभाव था और जनता की धार्मिक पुस्तकों तक पहुँच नहीं थी।संस्कृत में धार्मिक साहित्य था जिसे आमजन नहीं समझ पाते थे इसलिए लोगों में धर्म के प्रति जुड़ाव कम होता जा रहा था ऐसे में तुलसी ने अवधी लोकभाषा में यह ग्रंथ लिखा ताकि हर व्यक्ति उसे पढ़ सके, सुन सके, समझ सके उन्होंने *रामकथा* को एक *भक्ति आंदोलन* का माध्यम बना दिया।तुलसीदास जी ने लोगों के हृदय में *भगवान् राम* को एक *आदर्श राजा*, *मर्यादा पुरुषोत्तम*, और *सर्वधर्म समभाव* के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया
यह ग्रंथ असंख्य लोगों का कल्याण कर रहा है
राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दु:ख दारिद दोषा॥
मति अनुहारि सुबारि गुन गन गनि मन अन्हवाइ।
सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥ 43(क)॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भरद्वाज आश्रम की चर्चा क्यों की heat wave का उल्लेख क्यों हुआ शरीर की यात्रा को ढोना नहीं है से आचार्य जी का क्या आशय है जानने के लिए सुनें