अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः *परशुरामश्च* सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
(इन सातों का अमरत्व केवल शरीर का नहीं, अपितु उनके *कर्तव्यों, गुणों और योगदान की अमरता* का प्रतीक है।
ये चिरंजीवी हमें *धर्म, सेवा, ज्ञान, भक्ति, शक्ति और नीति* के आदर्श प्रदान करते हैं)
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६५ वां* सार -संक्षेप
पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न केवल निर्दोष नागरिकों को क्षति पहुँचाई, अपितु हमारे राष्ट्र के सम्मान को भी चुनौती दी है। इस घटना के प्रति शासन की त्वरित और सशक्त प्रतिक्रिया सराहनीय है किन्तु हमारा राष्ट्रभक्त समाज अपनी तैयारी रखे उसके एक एक व्यक्ति को शौर्य पराक्रम शक्ति सामर्थ्य की अनुभूति हो भय और भ्रम से वह दूर रहे उसके भीतर उपस्थित परमात्म तत्त्व उत्थित हो इसका हमें प्रयास करना है
अतः, आइए हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि हम न केवल अपने अधिकारों के प्रति सजग रहेंगे, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी निष्ठापूर्वक पालन करेंगे। हम ऊहापोह में न रहें हमें जागरूक रहने सचेत रहने की आवश्यकता है
दुष्टों की मंशा स्पष्ट है
ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥
लहरों की गिनती क्या करना कायर करते हैं करने दो।
तूफानों से सहमे जो हैं पल-पल मरते हैं मरने दो ।
चिर पावन नूतन बीज लिये मनु की नौका तिर जायेगी ।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी ॥
भगवान् परशुराम हमें प्रेरणा देते हैं
हमारे मन में उनके प्रति जो विकार भरे गए वो सही नहीं हैं
उन्होंने दुष्टों का संहार किया और उसके पश्चात् पितरों का तर्पण किया और तर्पण से पितर प्रसन्न हुए हैं
भगवान् परशुराम ने वरदान मांगा कि मैंने जो क्रोधवश दुष्ट क्षत्रिय वंश का नाश किया है उस कुकर्म के पाप से मैं मुक्त हो जाऊं और उनके रक्त से भरे सरोवर प्रसिद्ध तीर्थ हो जाएं
समन्तपंचक आज भी प्रसिद्ध है यह एक पवित्र स्थल का नाम है जो *महाभारत* काल से जुड़ा हुआ है। यह स्थान विशेष रूप से *कुरुक्षेत्र* क्षेत्र में स्थित माना जाता है और इसका वर्णन विशेष रूप से *भीष्म पर्व* और *अनुशासन पर्व* आदि में मिलता है।
📍 *समन्तपञ्चक का अर्थ:*
- *"समन्त"* = चारों ओर या सब ओर
- *"पञ्चक"* = पाँच
इसका शाब्दिक अर्थ हुआ — *चारों ओर फैले हुए पाँच पवित्र स्थल* या पाँच कुण्ड/झीलें, जो एक विशेष क्षेत्र में सम्मिलित हैं।
---
📖 *महाभारत में समन्तपञ्चक:*
- यह वही स्थान है जहाँ *महाभारत का महान युद्ध* हुआ था — *कुरुक्षेत्र* में।
- ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में *पाँच पवित्र सरोवर* थे, जिन्हें ऋषियों और देवताओं ने यज्ञों के माध्यम से पवित्र किया था।
- युद्ध के बाद *इन्हीं सरोवरों में महायोद्धाओं के अंतिम संस्कार* किए गए थे।
🧘♂️ *पौराणिक मान्यता:*
- यह स्थल इतना पवित्र माना गया कि स्वयं *भगवान विष्णु और अन्य देवगण* यहाँ पधारे।
- *पांडवों और भगवान कृष्ण* ने भी युद्ध से पूर्व और बाद में यहाँ *तीर्थ स्नान* किया था।
---
🌿 *आध्यात्मिक महत्व:*
- यह स्थल *धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक* है।
- साथ ही यह बताता है कि युद्ध के अंत में भी *पवित्रता और शांति की ओर लौटना आवश्यक* है।
- इसके पश्चात् परशुराम विरक्त हो गए वे महेन्द्र पर्वत पर चले गए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भीष्म और परशुराम के बीच हुए युद्ध की चर्चा में क्या बताया भैया प्रमेन्द्र जी के किस वीडियो की चर्चा की जानने के लिए सुनें