25.4.25

*आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३६६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३६६ वां* सार -संक्षेप


यह गम्भीर समय है भारत की परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं

अनेक जटिल समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं  जैसे मुस्लिम वर्ग, लोभी लालची राष्ट्रद्रोही राजनैतिक दल, नौकरशाही का प्रकोप, नौकरी पाने की लालसा और उसके लिए तथाकथित शिक्षा,अशिक्षित जाति पांति का लोकतन्त्र,गम्भीर चिन्तन से इतर लोलुपता से भरा चिन्तन,सनातन धर्म के प्रति अविश्वास,शुद्ध अध्यात्म बोध का अभाव आदि


 धर्म कसौटी पर है


है लज्जा की यह बात शत्रु—

आये आँखें दिखलाने को।


धिक्कार मर्दुमी को ऐसी,

लानत मर्दाने बाने को॥



 ऐसे समय में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए

जो भरा नहीं है भावों से,

बहती जिसमें रस-धार नहीं।


वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥


हमें अपनी भावुकता को क्रियाशीलता में परिवर्तित करने की आवश्यकता है

हमें पराश्रयता की मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है

हमें अपनों में अपनों के प्रति विश्वास की भावना को जाग्रत करना होगा

हमें शौर्य पराक्रम शक्ति की अग्नि को धधकाना होगा शुद्ध अध्यात्म वही है जो शौर्य से प्रमंडित हो जिसमें समाजोन्मुखता हो एकांगी अध्यात्म से कोई लाभ नहीं


आओ मिल सद्विवेक में ज्वाला धधकाएँ। 

फिर से अपने भारत में भास्वरता लाएँ  ।।


वही भास्वरता जो कभी भारत में थी जिसके कारण वह विश्वगुरु कहलाया 

यहां भगवान् परशुराम का उल्लेख करना सर्वथा उचित है वे केवल एक पौराणिक चरित्र नहीं, अपितु *धर्मरक्षक, अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने वाले तेजस्वी पुरुष* का प्रतीक हैं।जब भी समाज में अन्याय, अधर्म और अहंकार बढ़ा, तब उन्होंने उसे समाप्त करने के लिए *तेज और तप* का उपयोग किया।

जब पड़ोसी राष्ट्र (जैसे पाकिस्तान) हमें सरल, शांति-पसंद समझकर पीठ में वार करें, तब “परशुराम” जैसे तेजस्वियों की आवश्यकता होती है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने उन्हीं से प्रेरित होकर आग उगलती

*"परशुराम की प्रतीक्षा"* की रचना की  जो केवल एक युद्ध का उद्घोष नहीं, बल्कि *धर्म, न्याय, और राष्ट्र चेतना की पुकार* है।

यह कविता १९६२ के भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई थी, जिसमें दिनकर जी ने राष्ट्र के आत्मबल और वीरता को जाग्रत करने का आह्वान किया है।

हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,


कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।


कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,


आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,


सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,


हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।


हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,


दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया बी एन एस डी का उल्लेख क्यों हुआ कार्यक्रम किस प्रकार के करें बैठकें क्यों करें जानने के लिए सुनें