प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६८ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है कि हम अपनी सनातन परम्परा पर पूर्ण विश्वास करते हुए कर्मयोगी बनें, सांसारिक अहं को दरकिनार करते हुए सात्विक अहं की अनुभूति करते हुए विश्वासमय समाजोन्मुखी कार्य करें, संकल्पमय भावनामय जीवन जिएं, स्वदेशानुराग का भाव अपने भीतर प्रविष्ट कराएं, भय भ्रम कातर्य से दूर रहें, स्थान स्थान पर अपनों से संपर्क में रहें,*अपने राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने का संकल्प लें*
उठो जागो जगाओ बेफिकर सोई जवानी को
गुरू गोविंद बन्दा शिवा राणा सी रवानी को
न संयम इस तरह का हो कि रिपु दुर्बल समझ बैठे
चलो गंगाजली लेकर नमन करने भवानी को।
(*ओम शङ्कर* )
उपर्युक्त पंक्तियाँ राष्ट्रभक्ति, आत्मगौरव और जागरण का ओजपूर्ण आह्वान हैं। ये न केवल सोई हुई आत्मा को झकझोरती हैं, अपितु *गुरु गोविंद सिंह*, *बन्दा बैरागी*,*छत्रपति शिवाजी*, *महाराणा प्रताप* जैसे *महानायकों की परंपरा* को स्मरण कर हमें प्रेरित करती है।
यह कविता एक *आध्यात्मिक राष्ट्र जागरण का मंत्र* है। यह हमें यह स्मरण कराती है कि *संयम और शांति तभी शोभा देती है जब हम भीतर से सामर्थ्यवान् हों* अन्यथा शत्रु हमारी शांति को दुर्बलता समझ बैठता है l
कवितावली का एक अंश है जिसमें भगवान *शिव* के विविध *गुणों, स्वरूपों, और प्रभावों* का भव्य वर्णन है। यह काव्य न केवल काव्यात्मक सौंदर्य से परिपूर्ण है, अपितु *आध्यात्मिक ऊर्जा* से भी ओतप्रोत है।
यह स्तुति भगवान शिव के *भयंकर और सौम्य दोनों स्वरूपों* को एक साथ प्रस्तुत करती है। *शिव आराधक* को भय भ्रम नहीं रहता है
भूतनाथ भयहरन, भीम, भय भवन भूमिधर।
भानुमंत भगवंत, भूति भूषन भुजंग वर॥
भव्य-भाव बल्लभ, भवेस भव-भार-बिभंजन।
भूरिभाग, भैरव कुजोग-गंजन जन-रंजन।
भारती-बदन, बिष-अदन सिव, ससि-पतंग-पावक-नयन॥
कह तुलसिदास किन भजसि मन, भद्र-सदन मर्दनमयन।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *सोहनलाल धर्मशाला उन्नाव* में एक छोटी बालिका से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें