प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३६९ वां* सार -संक्षेप
बुद्धियुक्त शक्ति का प्रयोग आत्मभक्ति युक्त
जन जन सबल समर्थ देशभक्त हो,
रक्त हो न शीतल विरक्त कोइ भक्त हो न
बाल युवा प्रौढ़ वृद्ध सबल सशक्त हो ,
व्यक्त हर एक भाव देश की समृद्घि हेतु
युवक युवति श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त हो,
भारत प्रचंड तेजवन्त शौर्यमंत्र-पूत
वसुधा समग्र शान्ति संयम का वृत्त हो।
यह था एक ओजस्वी और भावसमृद्ध काव्यांश (घनाक्षरी छंद ) जो अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरणादायक है। यह राष्ट्रप्रेम, आध्यात्मिकता, कर्मठता और समाज के हर वर्ग को जागरूक करने का एक सुंदर आह्वान है।जिसमें
आचार्य जी ने *समाज के हर व्यक्ति* को *सबल (शक्तिशाली)*, *समर्थ (सक्षम)* और *देशभक्त* बनने का आह्वान किया है उद्देश्य स्पष्ट है कि हर व्यक्ति की भावना, सोच और कर्म का लक्ष्य *राष्ट्र की समृद्धि* हो उद्देश्य यह भी है कि राष्ट्र/समाज सशक्त हो ताकि *विजातीय*( heterogeneous)
कष्ट न दे सकें भारत राष्ट्र जब सशक्त रहेगा तो वसुधा भी शान्त रहेगी
हम कहते हैं *आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः*
सभी प्राणियों को अपने ही समान समझना चाहिए।किन्तु हमारी उदारता शक्तिहीनता में परिवर्तित न हो इसका हमें ध्यान रखना है हम जाग्रत रहें अपने राष्ट्रभक्त समाज के हर एक व्यक्ति को जाग्रत करने का संकल्प लें इस प्रकार संगठित हों कि कहीं आग लगे हम उसे बुझाने में समर्थ रहेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी भैया विवेक चतुर्वेदी जी का नाम क्यों लिया
सीमन्तोन्नयन संस्कार का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें
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