*धर्म हेतु साका करै सोही सच्चा*
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७० वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार वेलाओं, जिन्हें आचार्य जी ने अनवरत चलाने का संकल्प लिया है, का उद्देश्य है कि हम संवेदनशील राष्ट्र-भक्त *जाग्रत हों प्रेरित हों उत्साहित हों* विकृत शिक्षा के कारण हमारी जीवन शैली का जो ढांचा बदल गया है उसे हम सही कर लें हम ऊर्जा प्राप्त करें हम प्रकाशित हो जाएं हमारी आत्मदीप्ति समय पर काम दे जाए ये हमें *सनातन धर्म* के वैशिष्ट्य से परिचित कराती हैं इनसे हम *सदाचारमय विचार* प्राप्त करते हैं
*"सदाचारमय विचार"* अर्थात् नैतिक, संयमित और सत्कर्म-आधारित सोच ही वह भूमि है जिस पर *सनातन धर्म* की नींव टिकी है। सनातन धर्म केवल एक पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि *धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष* के संतुलन की जीवनदृष्टि है — जिसमें *सदाचार* मूल आधार है।
इस समय देश की समाज की परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं अनेक चुनौतियां सामने दिख रही हैं ऐसे में हम व्याकुल होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं तो यह कदापि उचित नहीं है हमें तो मार्ग निकालने का प्रयास करना है
हम अधिक से अधिक अपने आत्मीयजनों को आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर,राष्ट्र -भक्त बनाने का प्रयास प्रारम्भ कर दें
हम शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म. वह अध्यात्म जो केवल ध्यान में नहीं, धर्मरक्षा में भी सजग है, की महत्ता को समझने और समझाने का प्रयास प्रारम्भ कर दें *शौर्य (अर्थात् बाह्य जगत में अधर्म, अन्याय, भय और अंधकार से निर्भीक संघर्ष*)
*से प्रमंडित अध्यात्म"* — यह एक अत्यंत गहन और ओजस्वी अवधारणा है, जिसमें *आध्यात्मिक चेतना* और *वीरता* का अद्वितीय समन्वय निहित है। यह विचार सनातन भारतीय परंपरा की पहचान है इसी कारण भगवान् राम कहते हैं
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया पुनीत जी भैया सौरभ द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें