संवेदना भरपूर लेकिन कर्मवृत्ति अभाव है
परिदेवनारत हम सभी का यही बना स्वभाव है
जागें जगाएं कर्म के प्रति वृत्ति को खरधार दें
कर्मानुरागी बन चलें सोया समाज सुधार दें
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७१ वां* सार -संक्षेप
संसार समुद्र की तरह है जैसे समुद्र की गहराई का अंत नहीं, वैसे ही संसार की इच्छाएँ, भ्रम और मोह अनंत हैं। जीवन में निरंतर उठते-दिखते भाव जैसे समुद्र में ज्वार-भाटे, से भी यह स्पष्ट होता है जैसे समुद्र में बिना दिशा के नाव डूब सकती है, वैसे ही संसार में बिना विवेक के जीवन भटक सकता है
हमें इसमें तैरना यानि आत्मज्ञान, धर्म, भक्ति और विवेक से जीवन को पार करना सीखना ही होगा
"संसार युद्ध भी है"
अर्थात् यह एक सतत संघर्ष का क्षेत्र है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को बाह्य और आंतरिक युद्धों से जूझना पड़ता है यह कथन हमें जागरूक, सजग और साहसी बनाता है। यह स्मरण कराता है कि जीवन में पलायन नहीं, संघर्ष और समाधान ही उचित मार्ग है। इस युद्ध में विजयी होने के लिए हमें युद्ध के विधान जानने ही होंगे
संसार अबूझ पहेली भी है इस पहेली को सुलझाने का उपाय खोजने में मनुष्य ही सक्षम है और सौभाग्य से हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए
'मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्, आत्मवत् सर्वभूतेषु यो पश्यति सः पण्डितः' कहने वाले अर्थात् स्व का विस्तार करने वाले आर्ष परम्परा वाले भारत की परिस्थितियां इस समय अत्यन्त विषम हैं ऐसे में आपद् धर्म और नित्य धर्म में हमें सामञ्जस्य करना है इस समय देश के ऊपर एक भावी कार्य आ रहा है जिसके लिए हम सभी राष्ट्र -भक्तों को खड़ा होना है जब हम सभी राष्ट्र -भक्त एक जुट होकर जोर लगाएंगे तो देश खिलखिला उठेगा और तब हम भी आनन्द की अनुभूति करेंगे हम विलाप न करें एक दूसरे से संपर्कित रहें संगठित रहना समय की मांग है
यह वेद विदों का देश तपस्या सेवा इसकी निष्ठा है
इसका मंगल विश्वास जगत ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा है
यह जगन्नियन्ता का विश्वासी पौरुष की परिभाषा है
संपूर्ण जगत के संरक्षण की एकमात्र शिव आशा है
उन्नाव जाते समय आचार्य जी कल बीच से ही क्यों लौट गए भैया अमित अग्रवाल जी भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ भैया पंकज जी के किस पत्र की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें