5.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष  अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 5 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४६ वां* सार -संक्षेप


 सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं।


संसाराधारित चिन्तन एक भौतिक और सांसारिक दृष्टिकोण है जो व्यक्ति को बाहरी सुखों और सांसारिक सफलताओं की ओर आकर्षित करता है,हालांकि, यह केवल एक अस्थायी संतोष प्रदान करता है यह स्थायी शांति की ओर नहीं ले जाता। इसके विपरीत, *आध्यात्मिक धर्माधारित चिन्तन* व्यक्ति को शांति, संतुलन, और जीवन के उच्च उद्देश्य की पूर्ति की ओर ले जाता है और यही उसे सच्ची संतुष्टि और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

धर्माधारित चिन्तन के विलोप से हम सांसारिकता में लिप्त हो गए जिसने हमें व्याकुल ही किया

इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य स्पष्ट है आचार्य जी  इनके माध्यम से हमारे लिए उपादेय उपयुक्त सदाचारमय  विचार प्रदान करते हैं  जो हमारी मेधा को परिमार्जित करते हैं अतः हम इनका लाभ उठाएं क्षणांश में ही सही आत्मस्थ होने की हम चेष्टा करें


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।

सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात (परमात्मा से विमुखता) है, उसमें आत्मसंयमी व्यक्ति जागता है और जिसमें सब प्राणी जागते हैं अर्थात् भोग और संग्रह में लिप्त रहते हैं, वह तत्त्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात्रि है।

 क्षरणशील संसार में लिप्तता रात्रि है क्षरणशीलता के लिए लगातार जुटे रहना उचित नहीं है 

सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्य को विकार उत्पन्न किये बिना ही  प्राप्त होते हैं, वही मनुष्य परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों की कामना वाला नहीं।


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।


हमें मनुष्य का जीवन प्राप्त है हम मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए साधना करें अपने कर्तव्य को जानें 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि मानस जो एक अनुसंधान का भी विषय है का हम पाठ करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मियांगंज का उल्लेख क्यों किया हमारे लिए कौन सा अनिवार्य प्रश्न हल करना आवश्यक है जानने के लिए सुनें