'परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् '
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३८१ वां* सार -संक्षेप
देशभक्ति के दिव्य पावन आवेश से परिपूर्ण ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित उद्वेलित उत्साहित जाग्रत करने के अत्यन्त उत्साहपूर्ण उद्घोष हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए और अपनी कर्तव्यनिष्ठा को जाग्रत करना चाहिए
हमें प्रच्छन्न शत्रुओं से भी सावधान रहना चाहिए
यद्यपि भारत राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहित संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं किन्तु जब हम राष्ट्रभक्तों के अपने परिवार पर कोई कुदृष्टि डालता है तो उसे नष्ट करने की शक्ति क्षमता भी सदैव हमारे अन्दर रहनी चाहिए और इसके लिए हमें हनुमान जी के बल विक्रम प्रताप की अनुभूति करते हुए अपने पूर्वजों के तेज त्याग शौर्य से प्रेरणा लेकर अपने मनोबल को बढ़ाना चाहिए
अपने आत्मीय जनों को संगठित करना चाहिए उन्हें सचेत रखना चाहिए
रखें हौसला सदा विजय का कर्म व्रत संकल्प प्रबल
अथक परिश्रम देशप्रेम मन में पुरखों का तेजस बल,
शत्रु-मित्र का बोध हर घड़ी कभी न गफलत भ्रम या भय
*स्वर संगठित व्योम तक गूँजे* भारतमाँ की जय जय जय ।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १९३० का उल्लेख क्यों किया देशप्रेमी के क्या लक्षण हैं रघुनाथ -गाथा क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें