प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३८२ वां* सार -संक्षेप
लगातार संसरित हो रहे इस संसार की रचना और परंपरा प्रारंभ से ही ऐसी रही है जहाँ संघर्ष,धैर्य, उत्साह, साधना, ज्ञान आदि की परीक्षा चलती रहती है। इस चक्र को समझकर जीवन जीना आवश्यक है।
अध्यात्म कहता है गुणों और दोषों से युक्त इस संसार में रहते हुए शक्ति और शौर्य का प्रचुर मात्रा में संवर्धन करते हुए संसार की सांसारिकता के दोषों का हम निवारण करें और गुणों को धारण करें
यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है जिसका हमें वरण करना चाहिए वर्तमान परिस्थितियां भी यही संकेत कर रही हैं
अध्यात्म,संयम, शौर्य, कर्मशीलता आदि जीवन के सहज गुण हैं। इन गुणों को अपनाना कठिन नहीं, बल्कि मानवस्वभाव के अनुकूल है। परंतु यदि कोई व्यक्ति इन गुणों से अनभिज्ञ है, तो वह केवल मानव का शरीर लिए है, उसकी चेतना विकसित नहीं हुई।
आत्मज्ञान और कर्म का अभाव उसमें परिलक्षित हो रहा है
अध्यात्म संयम शौर्य सक्रियता सहज है
अनभिज्ञ दोनों से फकत मानव महज है
हे जागरित प्रियवर उठो यह जगत समझो
प्रारम्भ से इसकी रही कुछ यही धज है
यह कविता व्यक्ति को केवल सांसारिक जीवन में उलझे रहने से बाहर निकालकर *धार्मिक, नैतिक और देश-सेवा भाव से परिपूर्ण जीवन जीने* का संदेश देती है। इसमें संयम, शक्ति और सजगता — तीनों को मिलाकर एक संतुलित और जाग्रत जीवन की बात की गई है। परिस्थितियों को भांपने की क्षमता विकसित करते हुए हम आसपास की गतिविधियों को भी जानें उनकी उपेक्षा न करें हम सहस्र नेत्र रखें प्रच्छन्न शत्रुओं
,छद्मवेशधारियों से सावधान रहें
हमारे अन्दर देश के प्रति जागरित रहने का भाव होना चाहिए
इसके अतिरिक्त किस पत्र की आचार्य जी ने चर्चा की जो हमारे प्रधानमन्त्री को लिखा गया, व्यक्तित्व का विकास क्या है, १८ मई के कार्यक्रम के लिए क्या कोई शुल्क निर्धारित हुआ है जानने के लिए सुनें