हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें आज मिलकर, यह समस्याएँ सभी।
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा ( बुद्ध पूर्णिमा) विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 मई 2025 का जागरण-संदेश
*१३८३ वां* सार -संक्षेप
हमें अध्यात्म और व्यवहार दोनों में सामञ्जस्य रखना है संसार में रहते हुए पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन व्यवहार है व्यवहार यह भी है जहां हम रहें वहां हमारा प्रभाव रहे
आत्मशोध, आत्मानुभूति, अपने अन्दर आनन्द को खोज लेना अध्यात्म है हमारे द्वारा यह प्रयास हो कि हम आजीवन सत्कर्मों में रत रहते हुए अपने मनुष्यत्व को सार्थक करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के चिन्तन और अभ्यास से अपने मनुष्य जीवन को जाग्रत रखें
जागरण-संदेश भारत की प्रकृति का धर्म है
आत्मनिर्भरता सतत इस धर्मिता का मर्म है
इस प्रकृति की नियति का नेता सदा मानव रहा
किन्तु मानव वह जिसे प्रिय जन्मभर सत्कर्म है
आज कल युद्ध विराम की चर्चा चल रही है इसी कारण महाभारत का एक प्रसंग याद आ रहा है
कि कैसे भारत अकाल भस्मीभूत न हो जाए तो युद्ध विराम आवश्यक है
काशी के राजा ने अपनी तीन पुत्रियों — अंबा, अंबिका और अंबालिका — के स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें भीष्म ने बिना निमंत्रण के पहुँचकर तीनों का हरण किया। अंबा पहले से ही राजा शाल्व से प्रेम करती थीं, इसलिए भीष्म ने उन्हें शाल्व के पास भेज दिया। हालांकि, शाल्व ने अंबा को स्वीकार नहीं किया, जिससे अंबा ने अपने अपमान का कारण भीष्म को माना।
अपमानित अंबा ने अपने नाना के माध्यम से भगवान परशुराम से सहायता की याचना की। परशुराम ने भीष्म से अंबा से विवाह करने को कहा, लेकिन भीष्म ने अपनी ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा का हवाला देते हुए मना कर दिया।
परशुराम ने भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा, जिसे भीष्म ने स्वीकार किया। दोनों के बीच २१ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। अंततः, ऋषियों और मां गंगा के कहने पर युद्ध विराम हो गया
( बताते चलें
अंबा ने घोर तपस्या करके भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया और अगले जन्म में शिखंडी के रूप में जन्म लिया)
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित गुप्त जी और भैया उमेश्वर जी का नाम क्यों लिया, किसी भवन की सार्थकता कैसे है जानने के लिए सुनें