13.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 13 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३८४ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार, जो हमारे *जीवन की दिशा और ध्येय* दोनों को स्पष्ट करते हैं,ग्रहण करते हैं और कर्मरत होने का प्रयास करते हैं हम इनके आधार पर अपने जीवन का आकलन करें प्रातःकाल जागरण से लेकर रात्रि शयन तक हमारा जीवन कितना संकुचित है और कितना विस्तृत

तो इन संप्रेषणों की सार्थकता सिद्ध होगी

 (*संकुचित जीवन* – स्वार्थ, विलास, आलस्य और तुलना में डूबा।  

*विस्तृत जीवन* – समर्पण, त्याग, उद्देश्य और सेवा से प्रेरित)

  क्या हम *कर्तव्यनिष्ठ, विनम्र, समयबद्ध* हैं?क्या हम दूसरों के लिए कुछ करने का संकल्प लेते हैं?

   क्या दिनभर में किए गए कर्मों का हम मूल्यांकन करते हैं? इन पर चिन्तन करें आत्मतत्त्व की अनुभूति करें जिससे हम शक्ति के महास्रोत बन जाएं, स्वदेश के प्रति अनुरागी बनें स्वदेश की रक्षा करने के लिए संकल्पबद्ध हों

हम अपने जड़त्व के तत्त्वों जिनके प्रति हमारा अधिक आकर्षण होता है और चेतनत्व के अंशों की भी अनुभूति करें समीक्षा करें, स्थितप्रज्ञ होने का प्रयास करें


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


जिस समय पुरुष मन में स्थित सब कामनाओं को त्याग देता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है उस समय वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल रात्रि में हुए अपने मा. प्रधानमन्त्री के भाषण, जिसकी देश के भविष्य के साथ संयुति स्पष्ट है, की चर्चा की 

श्रुति स्मृति में क्या अन्तर है? स्थितिस्थापकता की चर्चा क्यों हुई? कौन शब्दशिल्पी बन सकता है? जानने के लिए सुनें