विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा,
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।
यह श्लोक भर्तृहरि रचित नीतिशतक से है
विपत्ति में धैर्य, उन्नति में क्षमा, सभा में वाक्पटुता, युद्ध में पराक्रम, कीर्ति में रुचि और शास्त्रों में रुचि — ये सभी गुण महापुरुषों में स्वाभाविक रूप से होते हैं।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
१३८५ वां सार -संक्षेप
शिक्षित होने का अर्थ यह नहीं है कि हमने बहुत सी जानकारियां एकत्र कर लीं यदि हम वास्तविक शिक्षा द्वारा शिक्षित हैं तो हमें शान्ति की अनुभूति होगी हम आनन्दित रहेंगे हम समय पर निर्णय लेने में सक्षम होंगे हम संगठन के महत्त्व को समझने में समर्थ होंगे हम धैर्यशाली विचारशील आत्मविश्वासी बन सकेंगे, मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकेंगे, यशस्विता प्राप्त कर सकेंगे
शिक्षा संस्कार है शिक्षा विचार है
शिक्षा समाजोन्मुखता का आधार है
शिक्षा ही सभ्यता को सुसंस्कृत बनाती है
वेदों के छह वेदांगों में से शिक्षा को वेद पुरुष की नासिका (घ्राण) कहा गया है।
--- वेदांगों और वेद पुरुष के अंगों का प्रतीकात्मक संबंध
वेदांगों को वेद पुरुष के अंगों के रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया गया है:
- छन्दः – पाद (पैर)
- कल्पः – हस्त (हाथ)
- ज्योतिषम् – चक्षु (नेत्र)
- निरुक्तम् – श्रोत्र (कान)
- शिक्षा – घ्राण (नाक)
- व्याकरणम् – मुख (मुख)
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १८ मई के कार्यक्रम के विषय में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया
हम अपना अस्तित्व कैसे बचाए रखे
शिक्षा -सङ्ग्रह क्या है वेद क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें