15.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८६ वां सार -संक्षेप


जब किसी संस्था का मूल भाव और विचारधारा इतनी सशक्त और प्रेरणादायक हो कि अन्य व्यक्ति या संस्थाएं भी उसे अंगीकार करने लगें, तो वह संस्था विस्तार पा लेती है वह प्रभावकारिणी होती है जैसे गंगा जिसमें अनेक नदियां रास्ते में मिलती हैं किन्तु गन्तव्य समुद्र तक  गंगा  पहुंचती है क्यों कि उसमें गंगा का मूल तत्त्व बना रहता है

 जैसे एक दीप से अनेक दीप जलते हैं, वैसे ही एक संस्थागत चिन्तन जब व्यापक जनमानस में प्रवेश करता है, तो उसका स्वाभाविक विस्तार होता है।

हमारी युगभारती संस्था अर्थात् पं दीनदयाल विद्यालय, जिसका उद्गम था महाराजा देवी सरस्वती शिशु मन्दिर तिलक नगर कानपुर, के पूर्व छात्रों द्वारा संचालित संस्था भी इसी प्रकार का विस्तार पाने में सक्षम है जिसका लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

यह ऐसी संस्था है जो इस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता को समझती है जो सिर चढ़कर बोले क्योंकि जो  व्यक्ति इस प्रकार की शिक्षा से शिक्षित होगा उसका व्यवहार अत्यन्त आकर्षक होगा

ऐसी संस्था की चर्चा होती है  ऐसी संस्थाओं से वातावरण पर्यावरण शुद्ध होता है पवित्र होता है हम लक्ष्य निर्धारित करें कि हमारे परिवारों का आन्तरिक बाह्य वातावरण पर्यावरण भी हमारे प्रयासों से शुद्ध हो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भगवद्गीता के 18वें अध्याय जिसका नाम है — "मोक्ष-संन्यास योग", जो गीता का अंतिम और सबसे व्यापक अध्याय है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को समस्त गीता-ज्ञान का संक्षेप में सार प्रदान करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य है कर्तव्य, संन्यास, त्याग, गुणों का प्रभाव, धर्मपालन और मोक्ष की प्राप्ति का विवेचन। के कुछ छंदों की चर्चा की

अमरकंटक का उल्लेख क्यों हुआ

जादूगरों की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें