16.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८७ वां सार -संक्षेप

 करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥

जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८७ वां सार -संक्षेप


शिक्षा एक ऐसा संस्कार है जो मनुष्यों को ही दिया जा सकता है शेष जीव प्रशिक्षित ही किए जा सकते हैं शिक्षित नहीं

हम यह ध्यान रखें कि हम शिक्षा को प्रशिक्षण मात्र न बनाएं एक ओर शिक्षा आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया है इसका उद्देश्य बुद्धि , विवेक, आत्मा और चरित्र का विकास करना है। जब कि दूसरी ओर प्रशिक्षण (Training) अधिकतर कौशल आधारित होता है और इसका उद्देश्य किसी कार्य को सटीकता से कराना है। यह केवल व्यवहारिक दक्षता को बढ़ाता है, परंतु आंतरिक दृष्टिकोण नहीं बदलता।

मनुष्य शिक्षा के द्वारा आत्मानुशासन, सदाचार, विवेक और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर अग्रसर होता है। शिक्षा को तकनीकी दक्षता तक सीमित न रखकर उसे मानवता और चरित्र-निर्माण से जोड़ना आवश्यक है। शिक्षा और संस्कार मनुष्य जीवन की सतत प्रक्रिया है  संस्कारयुक्त शिक्षा  अत्यन्त आवश्यक है

जिससे व्यक्ति सीखता है समझता है और व्यवहार जगत में प्रकट करने में सक्षम होता है व्यक्ति संस्कारयुक्त शिक्षा से शिक्षित है तो व्यवहार जगत की संफलता निश्चित है ऐसे व्यक्ति में मनुष्यत्व जाग्रत होता है

सच्चे मन से गुरु की शरण में जाना शिक्षा विद्या प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है  जिस प्रकार भगवान् राम अपने भाइयों सहित गुरु वशिष्ठ के आश्रम गए 

भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। 

अलप काल बिद्या सब आई॥


(नोट :अलप काल बिद्या सब पाई॥ अशुद्ध है क्यों कि विद्या वस्तु नहीं है )

विद्या  के लिए शिक्षा की उपासना करनी होती है इस उपासना के लिए मार्गदर्शन करने वाले शिक्षक 

के लिए भी शिक्षा की उपासना आवश्यक है इसी कारण शिक्षक महत्त्वपूर्ण हो जाता है

बालपन से किशोरावस्था तक संस्कार यदि सुदृढ़ हैं   तो संस्कार आसानी से नष्ट नहीं होते

 

असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥

अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥


भगवान् राम का रामत्व यहां से निखरना प्रारम्भ होता है वे इस प्रकार शिक्षित किए गए थे कि कठिन परिस्थितियों में खरे उतरे यह है  वास्तविक शिक्षा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने व्योमिका सिंह का नाम क्यों लिया दंगे होने पर कौन उसके निवारण के लिए पुस्तक की सहायता ले रहा था जानने के लिए सुनें