प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
१३८८ वां सार -संक्षेप
हम आत्मविश्वासी बनें विकारों पर प्रहार करने की अद्भुत शक्ति अर्जित करें आत्मबोध के साथ संसार को समझें समझदार लोगों को संगठित करने का प्रयास करें
मनुष्यत्व की अनुभूति करें मनुष्य हैं तो मनुष्य के हित के कार्य करें दुष्टों को दंड देने की शक्ति अर्जित करें नकली भूगोल बदले जाने की संभावना पर विश्वास करें प्रच्छन्न शत्रुओं को पहचानते रहें चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन करें और उसे समय पर व्यक्त करें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई।
अलप काल बिद्या सब आई॥
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड से लिया गया है
श्रीराम गुरुकुल में विद्या ग्रहण करने गए। उन्होंने बहुत ही अल्प समय में सम्पूर्ण विद्या प्राप्त कर ली।
इसमें श्रीराम के ज्ञान, बुद्धि और तेज की विशेषता को दर्शाया गया है कि वे परमात्मस्वरूप होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में, मानव की भांति विद्या के अर्जन हेतु गुरुकुल गए और अल्प समय में ही, क्योंकि उन्हें बहुत बड़ा काम करना है, विद्यार्जन ही करते रहेंगे तो वह काम कैसे होगा,समस्त ज्ञान को आत्मसात् कर लिया।
विद्या तत्त्व है और शिक्षा संसार का सत्य है सत्य के माध्यम से तत्व की प्राप्ति ही शिक्षा और विद्या का सम्बन्ध है
विद्या धर्म दर्शन और कला के अर्थों में प्रयोग की जाती है धर्म में विद्या का अर्थ वेद सामाजिक शास्त्र है दर्शन में विद्या का अर्थ अध्यात्म है
(अस कछु समुझि परत रघुराया !.....) वाक्य-ग्यान अत्यंत निपुन भव-पार न पावै कोई।
निसि गृहमध्य दीपकी बातन्ह तम निवृत्त नहिं होई॥ २॥
हमें विद्या और अविद्या दोनों को जानना चाहिए अर्थात्
अध्यात्म और भौतिकता दोनों को
विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥
यह मंत्र उपनिषद् की अद्वैत और समन्वयवादी दृष्टि को दर्शाता है—जहाँ संसार और ब्रह्म, कर्म और ज्ञान, दोनों की भूमिका मानी गई है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया संजाल क्या हैं आचार्य जी कितने बजे आज लखनऊ जा रहे हैं जानने के लिए सुनें