प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
१३८९ वां सार -संक्षेप
संसार में मनुष्य जैसे ही प्रवेश करता है माया उससे लिपट जाती है मायामय संसार में मायामुक्त होना सरल नहीं है
संसार में सभी कर्म किसी न किसी दोष से युक्त होते हैं, और माया के प्रभाव से मनुष्य इन कर्मों में बंध जाता है। फिर भी, हमें अपने स्वाभाविक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, और उन्हें भगवद्भाव से, बिना आसक्ति और फल की इच्छा के करना चाहिए। यही मोक्ष और शांति का मार्ग है।
हम युगभारती के सदस्यों ने जो लक्ष्य निर्धारित किया है अर्थात् राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
उसी की पूर्ति करता आज का कार्यक्रम होने जा रहा है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस कार्यक्रम के निष्कर्षों को लिखा जाए
जब हम अपने व्यक्तिगत कार्यों को त्याग समस्याओं से बिना व्याकुल हुए ऐसे कार्यक्रम करते हैं तो हमें आनन्द की अनुभूति होती है ऐसे समाजोन्मुखता को प्रदर्शित करते कार्यक्रमों से हमारी समाज में विश्वसनीयता भी वृद्धिङ्गत होती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया शरद जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें