प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 मई 2025 का मंगल विधान
१३९० वां सार -संक्षेप
हमारा सनातन धर्म जिसके मूल चिन्तन में संसार की रचना पुरुष और प्रकृति के मिलन से है, अद्वितीय है जिसमें अनेक विकल्प हैं
और जिसके उद्देश्य में केवल साधनात्मक मोक्ष, आत्मिक उन्नति ही न होकर परहित,संपूर्ण विश्व का कल्याण भी समाहित है जितने भी अच्छे कार्य हैं उन्हें सनातन धर्म ऊपर रखता है
जैसा निम्नांकित वाक्य से भी स्पष्ट है
" आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च " जिसका अर्थ है "अपने मोक्ष के लिए और जगत् के कल्याण के लिए।" यह वाक्यांश रामकृष्ण मिशन का आदर्श वाक्य भी है
आचार्य जी ने अनेक मङ्गलकारी रचनाएं निर्मित की हैं ऐसी ही कुछ रचनाओं को डा पङ्कज श्रीवास्तव जी ने बहुत परिश्रम करके संकलित कर दो पुस्तकों उन्मुक्त मुक्तक और साकल्य का आकार दिया इन दोनों ही पुस्तकों का कल विमोचन हुआ
साकल्य से ही एक कविता है
मैं रचनाकार अनोखा हूँ
मंगलविधान का उन्नायक
मैं सृष्टि सुधानिधि का गायक
स्रष्टा का सर्वप्रमुख पायक
मैं जीवमात्र का सुखदायक
पर, जब तब लगता " धोखा" हूँ।
मैं रचनाकार अनोखा...
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया भैया पीयूष वर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें