कविता शीतल छांव है प्रखर सूर्य का तेज
कवि के आगे सर्वदा राजदंड निस्तेज
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१३९१ वां सार -संक्षेप
आचार्य जी जो हम मानस पुत्रों का उत्कर्ष देखकर प्रसन्न होते हैं और इसके लिए तुलसीदास जी का एक प्रसिद्ध छंद है
जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥
हे भाई! जगत् में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक हैं, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं (अर्थात् अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं)। समुद्र सा तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है, जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर (दूसरों का उत्कर्ष देखकर) उमड़ पड़ता हैll
प्रायः हमें परामर्श देते हैं कि हम लेखन करें लेखन एक योग है
इससे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है
हम प्रतिदिन डायरी लिख सकते हैं
लेखन को केवल प्रकाशन या प्रशंसा की दृष्टि से नहीं, अपितु आत्मिक उन्नति और साधना के रूप में अपनाना चाहिए। यह दृष्टिकोण लेखन को एक गहन और अर्थपूर्ण प्रक्रिया बनाता है।
लेखन की अनेक विधाएँ हैं जिनके माध्यम से लेखक अपने विचार, अनुभव, कल्पनाएँ या ज्ञान प्रकट करता है। जैसे एक विधा है कविता - रचना अर्थात् छंद, लय और भावों के माध्यम से कलात्मक अभिव्यक्ति
कविता आती है स्वयं भावों में चुपचाप
छंद बन्द अवतारणा होती अपने आप
कविता कवि कौशल नहीं यह मां का वरदान
दुनिया से संभव कहां शब्द वर्ण संधान
कविता दुर्लभ कल्पतरु वरदायक विश्वास
प्राणों को पुलकित करे महकाए प्रश्वास
वैसे तो प्रारम्भ ही काव्यमय है वेदिक वाणी छंदबद्ध है छंद वेदपुरुष के चरण हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी वार्षिक अधिवेशन की चर्चा की जो बुन्देलखंड में ओरछा में होने जा रहा है ओरछा से राजा छत्रसाल का विशेष सम्बन्ध है
छत्रसाल ने बुंदेलखंड में स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक विकास को भी प्रोत्साहित किया। वे महामति प्राणनाथ जी के शिष्य थे और उनके मार्गदर्शन में उन्होंने पन्ना में हीरे की खानों का विकास किया, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
राजा छत्रसाल और ओरछा के बीच का संबंध बुंदेलखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह संबंध न केवल राजनीतिक और सैन्य सहयोग का उदाहरण है, बल्कि यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत वैर को भुलाकर धर्म, संस्कृति और क्षेत्र की रक्षा के लिए एकजुट होना कितना आवश्यक है।ऐसी एकजुटता हम युग भारती सदस्यों को दिखानी है और कार्यक्रम को सफल बनाना है
आचार्य जी आज कहां जा रहे हैं श्याम नारायण पांडेय जी, वीर कुंवर सिंह जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें