प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१३९४ वां* सार -संक्षेप
हमारा सनातन जीवनदर्शन अद्भुत है, इसकी भावनाएं अत्यन्त पवित्र हैं , वह विश्व को अपना परिवार कहता है संगठन में विश्वास रखता है विघटन से दूरी बनाता है
वह सदैव चाहता रहा है कि संपूर्ण विश्व का कल्याण हो, भय भ्रम की निशा का अवसान हो, यज्ञीय सुरभि से वातावरण महके
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य आत्मदाह का कारण बनते हैं
जब जीवन से विवेक हट जाता है और प्रमाद आता है, तब दुःख का आरंभ होता है। जीवन का दूसरा पहलू भी है
सृजनशीलता और चिन्तनमय जीवन सुख का कारण है
कथा, कविता, कला, कौतुक आदि सृजन और सौंदर्य के प्रतीक हैं।
चिन्तन, मनन,ध्यान, विधान जीवन को अर्थ और सौंदर्य प्रदान करते हैं। यही चिन्तन मनन हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराता है
हमें विश्वासी बनाता है कि संसार रूपी समर के हम विजयी योद्धा थे हैं और रहेंगे हम हिन्दुओं का स्वाभिमान जगाता है
कथा कविता कला कौतुक यही संसार का सुख है
कि चिन्तन मनन ध्यान विधान ही संसार का मुख है
इसी चिन्तन मनन में शौर्य विजय - व्रत दमकता है
प्रमादी षड्विकारी भाव ही संसार का दुख है ll
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित दूसरी कविता कौन सी सुनाई, वीराङ्गना पन्ना धाय का उल्लेख क्यों हुआ, लुर्की क्या है भैया दीपक जी भैया पंकज जी का उल्लेख किस संदर्भ में हुआ जानने के लिए सुनें