प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१३९५ वां* सार -संक्षेप
जिसका भाव प्रभावी होने लगता है उसे स्वयं तो सुख मिलता है उसके परिजन परिवारीजन भी सुखानुभूति करते हैं
भावात्मक संसार अत्यन्त अद्भुत है हमें ऐसा परिवेश मिला है कि हमारे अन्दर भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठा के भाव हैं
देश के लिए जिएं, समाज के लिए जिएं
ये धड़कने ये स्वास हो, पुण्यभूमि के लिए।
अपने जीवन का हर पल निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र के लिए समाज के लिए अर्पित करने वाले राष्ट्रभक्तों की एक लम्बी सूची है जैसे वीर सावरकर, छत्रपति शिवा जी, गुरु गोविन्द सिंह, महाराणा प्रताप
इन महापुरुषों की जीवन गाथाएँ हमें सिखाती हैं कि निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित जीवन ही सच्चे सुख और संतोष का मार्ग है। भय भ्रम से इतर
हमें भी अपने भाव सुस्पष्ट रखने हैं
हमें अपना आत्म विस्तार कैसे करना है यह सुस्पष्ट होना चाहिए
केवल तपस्या और इंद्रिय-निग्रह से आत्मविकास संभव नहीं है आत्मविस्तार के लिए जीवन के आकर्षणों, संबंधों और सेवा की भावना को भी अपनाना आवश्यक है।
संसार में हमें कैसे रहना है हमारा क्या कर्तव्य है यह हमें अच्छी तरह पता होना चाहिए जैसे भगवान् राम ने अपना कर्तव्य निभाया
(निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।)
कागर-कीर ज्यौं भूषन-चीर सरीर लस्यौ तजि नीर ज्यौं काई।
मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभाय सनेह सगाई॥
संग सुभामिनि भाई भलो, दिन द्वै जनु औध हुतै पहुनाई।
राजिव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई॥
ऐसे जीवनों की परम्परा हमसे संयुत है हम इसका आनन्द प्राप्त करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जयशंकर प्रसाद का उल्लेख क्यों किया पद्मपुराण की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें