प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१३९७ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम जो उनके मानस पुत्र हैं और जो प्रेम आत्मीयता के महत्त्व को भलीभांति जानते हैं भारतीय जीवन पद्धति की महत्ता को समझकर उसे अपनाएं जिसे हमने भ्रमवश त्याग दिया था
हम संयमित जीवन जीने का प्रयास करें
चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों प्राणायाम, ध्यान,योग, सत्संग करें खानपान सही रखें जल्दी जागें
ताकि हमारा शरीर ठीक रहे जिससे हमारी जीवनपद्धति को एक सकारात्मक दिशा मिले, हम यह अनुभूति करें कि हम ईश्वर के अंश हैं, संचित शक्ति की अभिव्यक्ति करें
ये प्रयत्न ही सदाचार
की महत्ता दर्शाते हैं
उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी-
दैवं प्रधानमिति कापुरुषा वदन्ति |
दैवं विहाय कुरु पौरुषमात्सक्तया
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोSत्र दोषः |
एक सदाचारी व्यक्ति न केवल अपने आचरण में श्रेष्ठ होता है, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता भी रखता है।
सदाचारी व्यक्ति संकल्पवान् सामर्थ्यवान् होता है वह शक्ति का प्रदर्शन भी करता है
ऐसे व्यक्ति की *संकल्प शक्ति* दृढ़ होती है, जो उसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होने देती
बुद्धियुक्त शक्ति का प्रयोग आत्मभक्ति युक्त
जन जन सबल समर्थ देशभक्त हो,
रक्त हो न शीतल विरक्त कोइ भक्त हो न
बाल युवा प्रौढ़ वृद्ध सबल सशक्त हो ,
व्यक्त हर एक भाव देश की समृद्घि हेतु
युवक युवति श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त हो,
भारत प्रचंड तेजवन्त शौर्यमंत्र-पूत
वसुधा समग्र शान्ति संयम का वृत्त हो।
इसके अतिरिक्त चार दिन के तमाशे से आचार्य जी का क्या तात्पर्य है भैया राजीव मिर्जा जी, भैया पुनीत जी, आचार्य मनोज जी का उल्लेख क्यों हुआ २००८ बैच के किस भैया की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें