27.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण *१३९८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९८ वां* सार -संक्षेप

हमारे पूज्य आचार्य जी, जिनकी वाणी में अद्भुत प्रभावशीलता, प्रेरणादायक शक्ति और कल्याणकारी भावनाएँ समाहित हैं, प्रतिदिन अपना बहुमूल्य समय देकर हम मानस पुत्रों को,जिन्हें आचार्य जी भारत के भविष्य के रूप में देखते हैं, उत्साहित और जाग्रत करने का सतत प्रयास कर रहे हैं। उनकी वाग्धारा इतनी मंत्रमुग्धकारी है कि श्रोता सहज ही उनके शब्दों में डूब जाते हैं। यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमें ऐसे महान् गुरु का सान्निध्य प्राप्त है, जो न केवल परोपकारी भाव से हमारे जीवन को दिशा दे रहे हैं, बल्कि हमें आत्मिक और नैतिक रूप से भी समृद्ध कर रहे हैं। हम भाव-भक्तों का भय और भ्रम दूर कर रहे हैं l

तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए


भारत जो ऋषियों मुनियों की तपोभूमि  है और जहां से वेद, उपनिषद, योग, ध्यान, धर्म, कर्म, मोक्ष जैसे गूढ़ तत्त्व प्रकट हुए और जिसका अस्तित्व केवल राजनीतिक सीमाओं में नहीं, बल्कि चेतना के एक विराट् रूप में है तात्विक दृष्टि से परमात्मा की अव्यय मूर्ति है

इसलिए भारत की भावना को केवल भूमि से नहीं, अपितु सनातन ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना के रूप में अनुभव करना चाहिए। यह भाव स्वयं में एक उपासना है।

हमारे यहां सेवा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है 

सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्य: 

वैष्णव, शैव, शाक्त, नास्तिक सभी सेवा को महत्त्व देते हैं सेवा साधना है जो अपनों के लिए समर्पित भाव से कार्य किए जाएं या भाव व्यक्त किए जाएं वह सारी सेवा है जैसे राष्ट्र-सेवा

वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवार्चन, संपूर्ण कार्यों की साधना, पुरश्चरण, षट्कर्म तथा ध्यानयोग का वर्णन हो, उसे आगम कहते हैं।


प्रत्येक आगम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें 'पाद' कहते हैं - क्रियापाद, चर्यापाद, योगपाद और ज्ञानपाद । क्रियापाद में देवालय की स्थापना,मार्ग-निर्मण, पौशाला-निर्माण, मूर्ति-निर्माण  का प्रतिपादन हुआ है।इसे पूर्त कर्म भी कहते हैं, चर्यापाद में मूर्ति की पूजा, उत्सव, भण्डारा आदि विषयों का निरुपण हुआ है। योगपाद में अष्टांगयोग साधना का तथा ज्ञानपाद में दार्शनिक विषय वर्णित हैं।

पुष्टिमार्गीय सेवा

समर्पण की सेवा है 

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि अधूरी सेवा क्या है 


इसके अतिरिक्त निबन्ध का समापन क्या है आज सरौंहां में  कैसा भण्डारा हो रहा है भैया पंकज जी की चर्चा क्यों हुई

महाजन कौन हैं जानने के लिए सुनें