अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
आत्म जब परमात्म से संयुत होता है तो उस अनुभूति की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 मई 2025 की कर्म-साधना
१३९९ वां सार -संक्षेप
प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-प्रकाशन की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है जो उसे आत्मज्ञान, आत्मबोध और आत्मविकास की ओर प्रेरित करती है।
यह वृत्ति हमें अपने वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है, जिससे हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझ पाते हैं।
आत्म-प्रकाशन की यह वृत्ति हमें सत्य, शिव और सुंदर की ओर अग्रसर करती है, जो भारतीय दर्शन का मूल है।
किन्तु आत्मा की पूर्णता के लिए तपस्या और जीवन के आकर्षणों दोनों का समावेश आवश्यक है। केवल आत्मसंयम से आत्मा का विकास अधूरा रह जाता है; इसके लिए जीवन के विविध अनुभवों और भावनाओं का अनुभव भी आवश्यक है।
यदि कोई व्यक्ति केवल तपस्या में लीन होकर जीवन के अन्य पहलुओं से विमुख हो जाता है, तो उसकी आत्मा का विकास अधूरा रह जाता है।
तभी कवि कहता है
तपस्वी आकर्षण से हीन कर सके नहीं आत्म-विस्तार यह जयशंकर प्रसाद की एक प्रसिद्ध पंक्ति है, जो उनकी रचना "कामायनी" में श्रद्धा के माध्यम से कही गई है
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः
हम स्वयं को महत्व देने के साथ सभी जीवों को भी महत्व दें।
इसके साथ आचार्य जी ने लेखन -योग को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताया हमारे मन में जो भाव आएं उन्हें हम अवश्य लिख लें
ऐसा लेखन, जो संवेदनाओं से भरा अनुपम धन है, हमें बहुत सहारा देता है
लेखन जो एक प्रकार का साधना तप है हमारे सुप्त हुए अस्तित्व को जाग्रत करने की क्षमता रखता है यह हर प्रकार के अंधकार को दूर करने में समर्थ है
लेखन केवल विचारों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरकर सत्य की खोज और आत्म-परिष्कार की प्रक्रिया है।
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपनी भूमिका को जानते हुए कर्मरत हों भावी पीढ़ी में व्याप्त भय और भ्रम का निवारण करें स्वयं सन्मार्ग पर चलते हुए उसे सन्मार्ग पर लगाएं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई
कहां किसके लिए कब कौन रोता कौन हंसता है
छुड़ाने आ रहा था जो वही आ आ फंसता है...
अमिताभ बच्चन जो १७ अप्रैल २००८ से लगातार अपना blog लिख रहे हैं की चर्चा क्यों हुई, आचार्य जी ने ६२-६३ वर्ष पूर्व की अपनी किस फोटो की चर्चा की
भैया आशीष जोग जी भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें