प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७४ वां* सार -संक्षेप
प्रभंजन कभी भी संदेश देकर के नहीं आता
किसी भी भांति का अवरोध उसको टुक नहीं भाता
मगर हम हैं सदा अवरोध ही बनते रहे उसके
यही उसका हमारा जन्म जन्मों का रहा नाता
*"प्रभञ्जन"* का अर्थ है *तूफान*, *भीषण विपत्ति*, या *आकस्मिक संकट*।
जैसा अभी २२ अप्रैल को पहलगाम में घटित हुआ
प्रभञ्जन हमें मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सदा सजग रहने का संकेत देता है यह हमें *चेतनशील* और *कर्तव्यनिष्ठ* बनाए रखने का आह्वान करता है
यह जीवन का अकाट्य सत्य है।
जब प्रभञ्जन आता है, तो कोई भी रुकावट उसे रोक नहीं सकती। यह उसकी स्वाभाविक शक्ति और निरंकुश गति का बोध कराता है।
किन्तु मनुष्य के रूप में हम बार-बार उसके लिए अवरोध की भूमिका में प्रकट होते ही रहते हैं यह संघर्ष, यह द्वंद्व — मनुष्य और संकट के बीच — शाश्वत है।
*प्रतिकूल परिस्थितियों, अनिश्चितताओं और जीवन में आने वाले झंझावातों* के प्रति मानव के दृष्टिकोण की ये एक प्रकार से समीक्षा है।
*समाज* शरीर रूपी राष्ट्र का *प्राण* है — जब तक समाज जीवित नहीं, जागरूक नहीं, सशक्त नहीं, तब तक राष्ट्र केवल एक खोखली संरचना बनकर रह जाता है यदि समाज नैतिक, उदार, जागरूक और संगठित है, तो राष्ट्र स्वतः ही शक्तिशाली और प्रतिष्ठित होता है हमें राष्ट्रभक्त के रूप में भारत देश के प्रति प्रेम रखने वाले इसी समाज को जागरूक सशक्त बनाना है
शक्ति का अर्जन विसर्जन दम्भ का
मुक्ति का भर्जन भजन प्रारम्भ का
संगठन संयमन युग की साधना है
देशहित शिव शक्तियों को बाँधना
है
नित्य प्रातः यही शिवसंकल्प जागे
पराश्रयता का यहाँ से भूत भागे
उठें अपनों को उठायें कर्मरत हों
बुद्धिमत्ता सहित हम सब धर्मरत हों l
आचार्य जी कल कहां जा रहे हैं, विरोधी दलों के नेता सुर में सुर क्यों मिलाने लगे जानने के लिए सुनें