प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७५ वां* सार -संक्षेप
कभी संयम नियम के नाम पर वैराग्य मत पालो,
कभी सुख शान्ति के बदले नहीं संघर्ष को टालो,
समस्या जगत भर में हर कदम पर ही समायी है ,
उसे दो-चार होकर ही हटाओ शक्ति भर घालो।
अत्यन्त प्रेरणास्पद और आत्मबल को जाग्रत करने वाली पंक्तियां, जो जीवन को पलायनवादी नहीं, सक्रिय और संघर्षशील दृष्टिकोण से जीने का आह्वान कर रही हैं
सतत पुरुषार्थ रत रहना पुरुष का सहज लक्षण है
इसी कारण धरा पर वह सदा सबसे विलक्षण है,
सदा पुरुषत्व की अनुभूति जिस नर में बनी रहती
वही भावुक वही उद्बुद्ध वह ही प्रभु विचक्षण है।
संयम और नियम जीवन में आवश्यक हैं, परंतु इनके नाम पर संसार से पलायन या निष्क्रियता उचित नहीं। संयम सक्रिय जीवन का मार्गदर्शन करे, न कि निष्क्रियता का बहाना बने कभी-कभी शांति की रक्षा हेतु युद्ध तक करना पड़ता है
संसार समर है,तो हथियार बिना कैसे
सागर है, तो पतवार चलाना ही होगा
— यह भगवद्गीता का भी संदेश है संसार में हर कदम पर कोई न कोई चुनौती है; समस्याओं से रहित कोई जीवन नहीं।
संकट जीवन के रंगमंच की शोभा हैं
इनसे विहीन सारा परिवेश अधूरा है,
पौरुष दहाड़ कर ज्यों बढ़ता संकट- समक्ष
धरती पर बिछ जाता बन चूरा चूरा है।
उन समस्याओं का समाधान मुँह मोड़ने से नहीं, बल्कि सामना करने से होता है। अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर हम उन्हें दूर करने का प्रयास करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई लखनऊ
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