प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४०१ वां सार -संक्षेप
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥
किन्तु जब नाम-जप में श्रद्धा संयुत हो जाती है, तब वह केवल उच्चारण नहीं रहता वह रूप ले लेता है। यह रूप अंतरात्मा में स्पंदन करने लगता है,साधक के भीतर गहन परिवर्तन लाता है यह श्रद्धा मनुष्य के अन्दर आत्मविश्वास की शक्ति उत्पन्न करती है अर्थात् श्रद्धा युक्त नाम-स्मरण ही सच्चा जप है।
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।
विवेकहीन और श्रद्धारहित संशयात्मा मनुष्य का पतन निश्चित है। ऐसे संशयात्मा मनुष्य के लिए न ही यह लोक है न ही परलोक है और सुख भी नहीं है।
उल्टा नाम जपत जग जाना। वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।।
हमारे उच्चारण यदि ठीक नहीं हो रहे हों और इष्टदेव के ध्यान में भी विक्षेप आ रहे हों तो भी श्रद्धा के कारण ये सारे दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।
श्रद्धा और विश्वास अद्भुत हैं सावित्री के समान पवित्र श्रद्धा देवी संपूर्ण विश्व को पवित्र करने वाली धर्म की पुत्री है
आत्मविश्वास से भरे हम भारत -भक्त भी भारत देश के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं
भगत सिंह चन्द्रशेखर खुदीराम आदि वीरों की लम्बी शृङ्खला है जिन्होंने मातृभूमि पर अपने शीश चढ़ा दिए क्यों कि इनके मन में देश के प्रति अपार श्रद्धा थी
इसके अतिरिक्त आज भैया पंकज जी कहां के लिए चल पड़े हैं कामायनी में श्रद्धा क्या है हल्दीघाटी का उल्लेख क्यों हुआ हम साधना के प्रतिफल कैसे हैं शेंडे आचार्य जी ने शेर का नाम लेकर किसे डराया था जानने के लिए सुनें