प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४०२ वां सार -संक्षेप
आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम अपने भीतर उठने वाले भावों, संवेदनाओं और विचारों को अधिक गहराई से अनुभव करें सतही प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठकर आत्मशोध और आत्म-बोध की ओर अग्रसर हों।
यह भाव-जगत् जितना गहन होगा, उतना ही हमारा चिंतन, व्यवहार और जीवन दृष्टिकोण समृद्ध व व्यापक होगा। यही गहराई हमें आध्यात्मिक रूप से भी उन्नत करती है और जीवन को सार्थक दिशा देती है यह एक आत्मविकास का संकेत है बाहरी संसार को परिवर्तित करने से पहले भीतर के भाव-जगत् को समृद्ध करने का यह आह्वान है हमारा शरीर एक साधना भूमि है यह संपूर्ण साधनों का आधार है
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा,
पाइ न जेहिं परलोक संवारा
कर्म का भोग भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन आनन्द (जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध काव्यकृति कामायनी की पंक्तियाँ )
ये पंक्तियां हमें सिखाती हैं कि हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और उनके परिणामों को स्वीकारना चाहिए।
साधना भूमि के रूप में वर्णित इस शरीर को उर्वर बनाने का हमें प्रयास करना चाहिए
कर्म करने के लिए शरीर की शुद्धि, सक्रियता भी अपरिहार्य है हमारे लिए विकारों को दूर करना अनिवार्य है इसके लिए प्रातः काल का जागरण आवश्यक है खान पान शुद्ध सात्विक रखने की जरूरत है
संगति विकृत न हो इसका ध्यान रखें
अनेक ऐसे होते हैं जो शरीर के महत्त्व को नहीं समझते
वे मानव-बम तक बन जाते हैं उन्हें मानवों को नष्ट करना अच्छा लगता है ऐसे दुष्ट आज भी हैं और पहले भी थे
ऐसे अधर्मों के प्रतीकों को नष्ट करने के लिए अवतार प्रकट होते हैं जैसे भगवान् राम दुष्टों के नाश के लिए अवतरित हुए
"सुखी भए सुर, संत, भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई" यह पद का अंश गोस्वामी तुलसीदास कृत गीतावली के बालकाण्ड से संबंधित है जो श्रीराम के जन्म के समय के आनंद और उल्लास का वर्णन करता है।
श्रीराम के जन्म से देवता (सुर), संत और ब्राह्मण सभी आनंदित हो गए।
और दुष्टों के मन मलिन (दुःखी) हो गए, क्योंकि धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश सुनिश्चित हो गया।
श्रीराम के अवतरण के समय के वातावरण को अद्भुत ढंग से यहां चित्रित किया गया है जहाँ संपूर्ण सृष्टि में आनंद व्याप्त है तो अधर्म के प्रतीकों में भय और चिंता उत्पन्न हो रही है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने स्वास्थ्य के विषय में क्या बताया भैया पंकज जी ने अयोध्या के विषय में क्या बताया आसावरी क्या है जानने के लिए सुनें