अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७६ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी का प्रयास रहता है कि पं दीनदयाल जी के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए कटिबद्ध दीनदयाल विद्यालय के हम छात्र इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण करें और उन्हें अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार क्रिया में परिवर्तित करें
हमारी सनातन संस्कृति अद्भुत है हमारा इतिहास शौर्य और पराक्रम के प्रतीक अनेक पूर्वजों जो भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, से भरा पड़ा है वे kन केवल युद्धभूमि में अद्वितीय वीरता दिखाने वाले योद्धा रहे हैं, बल्कि स्वधर्म,सत्य और राष्ट्र- रक्षा के लिए अपने जीवन का सर्वस्व अर्पण कर देने वाले मार्गदर्शक भी हैं। उनकी वीरगाथाएं हमें प्रेरित करें, हम रामत्व की अनुभूति करें, हनुमान जी
(मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥)
जिनका रामकार्य में पूर्ण समर्पण, असाधारण शारीरिक एवं आत्मिक शक्ति,नीति, विवेक और युक्तिपूर्ण कार्य परम भक्त का आदर्श रूप असत्य और अधर्म के विरुद्ध अडिगता परिलक्षित होती है का तेज धारण करें
भले ही परिस्थितियाँ विषम हों,प्रकृति भी विरोध में लगे, कोई भी व्यक्ति साथ न दे
तब भी
*आंधियां जोर की चलती हों*,
*उल्काएं रूप बदलती हों*
*धरती अधैर्य धर हिलती हो*
*अपनों की सुमति न मिलती हो*
*तब जयश्रीराम पुकार उठो*
*अपना पौरुष ललकार उठो*
*पुरखों का शौर्य निहार उठो*
*हनुमन्त तेज को धार उठो*
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १८ मई के विषय में क्या बताया भैया अजय शंकर जी का विशेष उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें