प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३७७ वां* सार -संक्षेप
वाचिक संस्कारशाला की कक्षाओं के रूप में परिलक्षित हो रहे इन सदाचार संप्रेषणों में भाव विचार क्रिया व्यवहार आदि बहुत कुछ समाहित है जिनसे हमें लाभ प्राप्त होता है हमारे विचार सुदृढ़ होते हैं हमें सकारात्मक सोच की दिशा प्राप्त होती है
पहलगाम कांड ने विभिन्न पहलुओं पर भारत राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहितों को पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया है। यह केवल एक आतंकवादी हमला नहीं, बल्कि एक व्यापक बौद्धिक संघर्ष की शुरुआत का संकेत है, जिसमें हमें अपनी नीतियों और दृष्टिकोणों की पुनः समीक्षा करनी होगी। यह समय भलमनसाहत का नहीं है, यह बौद्धिक संघर्ष के साथ शारीरिक संघर्ष का भी समय है हमें परस्पर बैठकर इस पर चिन्तन मनन विचार तर्क करने की आवश्यकता है कुतर्क से हमें सतर्क रहना है समाज हमारा विरोध न करे इसके लिए हमें उसे अपने अनुकूल बनाने के प्रयास करने होंगे व्यापारी व्यापार में ही मग्न न रहे समाज को कुछ देने का भाव रखे इस ओर भी हम ध्यान दें
उठो जागो जगाओ बेफिकर सोई जवानी को
गुरू गोविंद बन्दा शिवा राणा सी रवानी को
न संयम इस तरह का हो कि रिपु दुर्बल समझ बैठे
चलो गंगाजली लेकर नमन करने भवानी को।
(*ओम शङ्कर* )
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जप का क्या महत्त्व बताया १८ मई को हमें किस विषय पर चर्चा करनी है २१ व २२ सितम्बर को होने जा रहे वार्षिक अधिवेशन के लिए हमें क्या करना है जानने के लिए सुनें