7.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७८ वां* सार -संक्षेप

 ललकार रहा भारत को स्वयं मरण है,

हम जीतेंगे यह समर, हमारा प्रण है


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७८ वां* सार -संक्षेप

परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं ऐसे में हाथ पर हाथ धरकर उनका रोना रोने से कोई लाभ नहीं हम तो अपना चिन्तन प्रखर करें और उसके अनुसार कार्यान्वयन करें अपनी समाजोन्मुखता जाग्रत करें ताकि हम एक उदाहरण बन सकें हमें अपने प्रयत्नों से सोए हुए सिंहों को जगाना है

 जिनमें शक्ति है किन्तु उन्हें उसकी अनुभूति नहीं

याद आ रही है

*"परशुराम की प्रतीक्षा"*  की जो राष्ट्रकवि *रामधारी सिंह 'दिनकर'* द्वारा रचित एक प्रभावशाली प्रबंध काव्य है, जो १९६२ के भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में लिखा गया था। इस काव्य में दिनकर जी ने भगवान परशुराम जो जाग्रत क्रांति और आत्मरक्षा के उदाहरण हैं को प्रतीक बनाकर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व की शांति-नीति और सैन्य उपेक्षा की आलोचना की है।यह रचना तत्कालीन नेतृत्व की निष्क्रियता पर तीखा व्यंग्य करती है और सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

उसी काव्य की निम्नांकित पंक्तियां देखिए


केवल कृपाण को नहीं, त्याग-तप को भी,

टेरो, टरो साधना, यज्ञ, जप को भी ।

गरजो, तरंग से भरी आग भड़काओ,

हो जहाँ तपी, *तप से तुम उन्हें जगाओ।*


युग-युग से जो ऋद्धियाँ यहाँ उतरी हैं,

सिद्धियाँ धर्म की जो भी छिपी, धरी हैं,

उन सभी पावकों से प्रचण्डतम रण दो,

शर और शाप, दोनों को आमन्त्रण दो।


चिन्तको ! चिन्तना की तलवार गढ़ो रे ।

ऋषियो ! कृशानु-उद्दीपन मंत्र पढ़ो रे ।

योगियो ! जगो, जीवन की ओर बढ़ो रे ।

बन्दूकों पर अपना आलोक मढ़ो रे ।


है जहाँ कहीं भी तेज, हमें पाना है,

*रण में समग्र भारत को ले जाना है* ।


 केवल बाह्य शक्ति (कृपाण) पर निर्भर न रहकर, आंतरिक शक्ति—त्याग और तपस्या—को भी जाग्रत किया जाए इसका प्रयास होना चाहिए यह संतुलित दृष्टिकोण हमें बताता है कि सच्ची शक्ति बाह्य और आंतरिक दोनों गुणों के समन्वय से प्राप्त होती है।  शस्त्र और शास्त्र दोनों की ही आवश्यकता है समाज में सच्चा परिवर्तन केवल बाह्य शक्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक साधना, त्याग और तपस्या से संभव है।  हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और उसे जाग्रत करें।


आपदा धैर्य का एक परीक्षा स्थल है 

इस थल पर प्रायः होती बुद्धि विकल है 

किन्तु जहाँ पौरुष पल्लवित रहा है 

साफल्य वहाँ हरदम निर्बाध बहा है।


विद्यालय में ताले से संबन्धित कौन सा प्रयोग हुआ था,अल्पभाषी माननीय अनन्त राव गोखले जी का उल्लेख क्यों हुआ गतिमत्ता कहां से आती है जानने के लिए सुनें