प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१२ वां सार -संक्षेप
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
यह लक्ष्य पूर्णतः स्पष्ट, उद्देश्यपूर्ण और राष्ट्रचेतना से ओतप्रोत है।
इसी लक्ष्य के अनुसार सूर्य के उजास से प्रेरणा लेकर हमें अपने राष्ट्र-भक्तों को संगठित करते हुए विश्वास का सेतु बनाते हुए उनके भय और भ्रम को दूर करना है उन्हें अपने सनातन धर्म, जो अत्यन्त सामञ्जस्यपूर्ण है,की विशेषताओं से परिचित कराना है शौर्ययुक्त अध्यात्म ( शक्ति भक्ति साथ साथ )के वैशिष्ट्य को बताना है
यह दृष्टिकोण स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, वीर सावरकर,डा हेडगेवार, मधवराव गोलवलकर जैसे विचारकों की परंपरा से जुड़ता है, जिसमें धर्म केवल निजी साधना नहीं, राष्ट्र के जागरण का आधार है।
उठो जागो जगाओ जो पड़े सोए भ्रमों भय में
जिन्हें विश्वास किञ्चित् भी नहीं है नीति में नय में
स्वयं के आत्मप्रेमी सलिल के छींटे नयन पर दो
कहो हे भरतवंशी! धर्म अपना है जगज्जय में
जगत् को जीतने का अर्थ है कि हमें अनगिनत मानवों के हृदय जीतना है यह संसार का आनन्दमय पक्ष है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया अपने सूत्रसिद्धान्तों की समीक्षा अवश्य करें
भैया पंकज जी और पक्षियों की बोली का क्या प्रसंग है भैया ओमप्रकाश जी भैया डा ज्योति जी भैया धैर्य जी का उल्लेख क्यों हुआ आत्मगोपी कब नहीं बनना है रात १०:३० बजे आचार्य जी के घर कौन आया
१५ की बैठक हेतु क्या परामर्श है किन अंकुरों को वृक्ष बनना है
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