क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।२/६३।।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४११ वां सार -संक्षेप
आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम युगभारती के सभी आत्मीय सदस्य उनके मानसपुत्र इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर इनका लाभ उठाएं और
शक्ति शौर्य चिन्तन मनन से परिपूर्ण होते हुए कर्मानुरागी बनें व्यध्व पर चलने से बचें
मोह, कामना, तृष्णा, क्रोध, लोभ आदि विकारों से बचने का प्रयास करें
मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव नजेही॥
तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा॥4॥
उनमें से भी किस-किस को मोह ने विवेकशून्य नहीं किया? जगत् में ऐसा कौन है जिसे कामना ने न नचाया हो? तृष्णा ने किसको पागल नहीं बनाया? क्रोध ने किसके हृदय में जलन उत्पन्न नहीं की ?॥4॥
ग्यानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार।
केहि कै लोभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार॥ 70 क॥
इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी, तपस्वी, शूरवीर, कवि, विद्वान् और गुणों का धाम है, जिसकी लोभ ने मिट्टी पलीद न की हो
फिर भी हम बेदाग जीवन जीते हुए एक एक कदम आगे बढ़ाएं
विषम परिस्थितियाँ जीवन का हिस्सा हैं इन्हें टालना नहीं, सहन कर आगे बढ़ना ही पुरुषार्थ है। जब तक तन में प्राण हैं, तब तक कर्तव्य-कर्म से विमुख नहीं होना चाहिए। यदि हम कर्म नहीं करेंगे तो शरीर जड़,मन कुंठित और विचार भ्रमित हो जाते हैं। धीरे-धीरे हम स्वयं के ही शत्रु बन जाते हैं और आत्मविनाश की ओर बढ़ते हैं।
विपत्ति में भी निष्क्रियता नहीं, बल्कि परमात्मा के प्रति समर्पित होते हुए सतत् कर्म ही जीवन का रक्षण है।
परमात्मा के समक्ष दैन्यपूर्ण समर्पण जो भक्ति का ही एक भाव है को व्यक्त करते ये उद्गार देखिए
(संसार रूपी समुद्र में भंवर में फँसी नाव का चित्र अत्यंत मार्मिक है यह जीव की स्थिति का सुंदर प्रतीक है। आत्मा की परमात्मा के प्रति पुकार में कोई अहं नहीं केवल विनम्र समर्पण है।)
हे जगत्पिता हे जगदीश्वर संसार समन्दर पार करो
है बीच भंवर में फंसी नाव हे उद्धर्ता उद्धार करो
यह भक्ति भाव से भरी आर्त वाणी की है व्याकुल पुकार
हे दयाधाम दयनीय भक्त को एक बार फिर लो निहार
इस समय परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं घोर अंधकार छाया हुआ है ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम उस अंधकार को दूर करने में अपना योगदान दें और राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में जो कर्तव्य है उसे निभाएं
अंधेरा है मगर दीपक जलाना भी मना क्या
सवेरा है मगर देखो कि कोहरा है घना क्या
कि अपने कर्म से संसार में चूको न क्षण भर
रहो चौकस कि देखो कहां क्या बिगड़ा कहीं पर कुछ बना क्या
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शैलेश जी भैया अंशुल जी भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें