प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१३ वां सार -संक्षेप
जब स्वत्व सत्य से आतंकित होता है
आँचल प्रसूत को बोझ मान ढोता है
जब अनुनय की भाषा प्रपंच होती है
परवाह धर्म की जब न रंच होती है
सुख सुविधायें जब परिपाटी हो जातीं
यह दिव्य देह केवल माटी रह जाती ॥२॥
आ गया समय ऐसा ही अब भी जागो
सविता से दीप्त विवेक मुखर हो माँगो
(ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ )
संयम साधना सुकर्म धर्म को जानो
अपनों को अपने से पहले पहचानो
देखो भारत माता आँचल फैलाती
माँगो विवेक की आँख बज्र की छाती ||३||
(अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं १३ वीं कविता के अंश )
हमें यह जो मनुष्य का शरीर मिला है यह केवल मिट्टी नहीं है हमें सुख सुविधाओं की परिपाटी का अनुसरण नहीं करना है यह देह दिव्य है यह अनुभूति करनी है
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥
बड़े भाग्य से परमात्मा के वरदान स्वरुप यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है सबसे बड़ा साधन यह शरीर साधना का आधार और मोक्ष का द्वार है (साधना साधनों के आश्रित नहीं होती है)। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया
वह परलोक में दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा अपना दोष न समझकर काल पर, कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष मढ़ता है
हमें परमात्मतत्त्व की अनुभूति अवश्य करनी चाहिए वह विभु आत्मा है हम अणु आत्मा हैं
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ।
तू है महासागर अगम, मैं एक धारा क्षुद्र हूँ॥
तत्त्व शक्ति को पहचानने का हौसला रखें शिवत्व की अनुभूति करें और अपने भारत देश को एक शक्तिसंपन्न देश बनाने के लिए अपना योगदान दें क्योंकि हमने अपना लक्ष्य भी बनाया है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लिपिड प्रोफाइल वाले लेख की चर्चा की और परामर्श दिया कि अनियमितता से बचें
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