12.6.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण १४१४ वां सार -संक्षेप

 त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  12 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४१४ वां सार -संक्षेप


तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।

तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ।।

स्वर्ग और मोक्ष के सभी सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा

जाए तो भी वे सब मिलकर उस सुख के बराबर नहीं हो सकते

जो लव (क्षण) मात्र के सत्संग से होता है। सदाचार संप्रेषण रूपी इस सत्संग में हमारे पास  तो १६/१७ मिनट उपलब्ध हैं आइये इनका लाभ उठाएं 



युगभारती संस्था, जो पं दीनदयाल उपाध्याय विद्यालय का इतिहास और भविष्य है,समाज -सेवा का एक संकल्प लेकर चल रही है

हम जो उसके सदस्य हैं साधना में रत हैं ताकि हमारा समाज उत्थित प्रबोधित उत्साहित जाग्रत हो सके  दीनदयाल जी की अधूरी कथा को पूर्ण करने का संकल्प लेकर हम चल रहे हैं साधक के रूप में हम अपने लक्ष्य को लेकर स्पष्ट हैं और हमारा लक्ष्य है 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

साधक कभी स्वर्ग अर्थात् सुखों का आगार नहीं चाहता है 

साधक या तो अपवर्ग अर्थात् "न पवर्गः इति अपवर्गः"

अर्थात् जहाँ पर प वर्ग नहीं है वही अपवर्ग है, हिन्दी वर्णमालान्तर्गत प वर्ग 

प फ ब भ म अक्षर हैं

प - पतन

फ- फलाशा

ब- बंधन

भ - भय

म - मृत्यु


 चाहता है या कर्म का संसार चाहता है

परिस्थितियां जैसी भी हों हमें अपने उद्देश्य पर केन्द्रित रहना चाहिए हमें किसी प्रकार का भ्रम नहीं पालना चाहिए

 व्यामोहित नहीं होना चाहिए जैसे अर्जुन आत्मीय जनों को देखकर व्यामोहित हो गया था भीष्म द्रोणाचार्य आदि युद्ध के लिए सन्नद्ध हैं अर्जुन नहीं 

तब भगवान् कृष्ण कहते हैं 


हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।


तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।2.37।।


युद्ध में मरकर तुम स्वर्ग प्राप्त करोगे या जीतकर पृथ्वी को भोगोगे अतः हे अर्जुन! युद्ध का निश्चय कर तुम खड़े हो जाओ।।


सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।


सुख-दु:ख,  लाभ-हानि,जय-पराजय को समान करके युद्ध के लिये तैयार हो जाओ  इस प्रकार तुमको पाप नहीं लगेगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दुर्गेश वाजपेयी जी, भैया प्रदीप जी, भैया शैलेश जी का उल्लेख क्यों किया १५ के कार्यक्रम की क्यों चर्चा की  जानने के लिए सुनें