मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे
मनमन्दिर की तुम ही उपासना मूरत थे
साधना साध्य की तुम ही थे तब एकमेव
सचमुच ही अनुपम दिव्य समय की सूरत थे
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१५ वां सार -संक्षेप
जब चहुं ओर चरित्र और विश्वास का संकट हो, तब भी अगर हम धैर्य, सकारात्मकता और आत्मबल के साथ मुस्कराते हुए अडिग रहेंगे, तो वही संकट धीरे-धीरे दूर हो जाएंगे
"स्थितप्रज्ञ" पुरुष की तरह न दुःख में हम विचलित हों और न सुख में अहंकार करें
और कर्मानुरागी बनते हुए हम प्रयास करें कि हमारा जीवन परिचय ऐसा हो कि लोगों को उससे प्रेरणा मिले
तो हम एक उदाहरण बन जाएंगे संसार को लगेगा कि ऐसे समय में भी इन सामान्य से दिखने वाले लोगों ने ऐसा कर दिया
सेवा में यदि हमें आनन्द मिल रहा है तो शरीर हवन कुंड की समिधा बन जाता है इसलिए सेवा धर्म अपनाएं संघर्ष के क्षेत्र में अपनी भूमिका को जानें क्यों कि हमने भारत को सबसे बड़ी भारती मानते हुए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में संकल्प लिया है
जीवन-परिचय ऐसा हो जिससे औरों को प्रेरणा मिले
सीखने समझने करने की अभिनव नूतन धारणा खिले
जीवन पढ़ते ही भीतर की बुझती बाती झिलमिला उठे
भावों मे ज्वार विचारों में संकल्प - पुष्प खिलखिला उठें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया मनोज सिंह जी भैया सुनील सिंह जी का नाम क्यों लिया platform पर कौन रहता था जानने के लिए सुनें