प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१७ वां सार -संक्षेप
पं दीनदयाल उपाध्याय के विचारों विश्वासों संकल्पों के अधूरेपन की साधना में रत विश्वासों में जीने वाले हम साधक जाग्रत उत्साहित प्रबोधित हों आचार्य जी नित्य इसी का प्रयास करते हैं साधना वही कर सकता है जो यम और नियम के प्रति आग्रही है
अष्टाङ्गयोग के पहले अंग के रूप में जाने जाने वाले यम के पाँच मुख्य नियम होते हैं:
1. अहिंसा — किसी को हानि न पहुँचाना
2. सत्य — सच्चाई का पालन
3. अस्तेय — चोरी न करना
4. ब्रह्मचर्य — इन्द्रियों पर संयम
5. अपरिग्रह — संग्रह की प्रवृत्ति का त्याग
नियम अर्थात् अष्टांग योग के दूसरे अंग में पाँच मुख्य नियम बताए गए हैं:
1. शौच — शरीर और मन की शुद्धि
2. संतोष — संतुष्ट रहने की भावना
3. तप — साधना, अनुशासन
4. स्वाध्याय — वेदों और आत्मचिंतन का अध्ययन
5. ईश्वरप्रणिधान — ईश्वर में समर्पण
ईश्वर में पूर्ण आस्था अत्यन्त आवश्यक है ऋषि वल्लभाचार्य के अनुसार ईश्वर सच्चिदानन्द है सत् चित् आनन्द तीनों समभाव में
1. सत् — अस्तित्व, जो सदा है, जो नष्ट नहीं होता (शुद्ध अस्तित्व)
2. चित् — चैतन्य, ज्ञानस्वरूपता, पूर्ण चेतना
3. आनन्द — पूर्ण आनन्द, निर्विकल्प सुख, परम संतोष
"सच्चिदानन्द" का अर्थ है —
"जो सदा रहता है, पूर्ण चेतन है और जिसका स्वरूप परमानन्द है।"
हम जीवात्मा में सत् चित् है लेकिन आनन्द का तिरोभाव है
आज हम लोग सरौंहां में हिन्दुभाव के कारण एकत्र हो रहे हैं हिन्दुभाव अजर है अमर है और सबके साथ चलने का भाव व्यक्त करता है हम इसी कारण वसुधा को कुटुम्ब मानते हैं इसी के साथ हम शौर्ययुक्त अध्यात्म को मानते हैं
हो एकत्रित किसी बहाने हिन्दुभाव के नाते
तभी सुरक्षित रह पाएंगे घर के रिश्ते नाते
हिन्दु हिन्दुस्थान सनातन धर्म न चिन्तन ही है
इसके लिए शक्ति संवर्धन और संगठन भी है
हम संगठित तभी होंगे जब अपनों को जानेंगे
उनके सुख दुःख लाभ हानि को मन से पहचानेंगे
केवल बातें नहीं करें उतरें नित प्रति अपनों हित
अपने वे जो भरतभूमि भारत माता से गर्वित
तो चलिए सरौंहां जहां आपका स्वागत है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बचनेश जी का नाम क्यों लिया भैया पंकज जी, भैया प्रवीण सारस्वत जी भैया अजय शंकर जी भैया तरुण अग्रवाल जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें