प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४१९ वां सार -संक्षेप
इन सदाचार-वेलाओं के माध्यम से आचार्यजी प्रतिदिन हमें जागरूक एवं प्रेरित करते हैं, ताकि हम चिन्तन मनन निदिध्यासन आदि में रत हो सकें संकल्पबद्ध हो सकें वह आंतरिक शक्ति प्राप्त कर सकें, जिससे हमारे समाज के सत्पुरुषों में व्याप्त व्याकुलता, भय और भ्रम का शमन किया जा सके।
तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
रामचरित मानस एक अद्भुत ग्रंथ है एक प्रसिद्ध रामायणी का कहना है बालकांड का प्रारम्भ अयोध्या कांड का मध्य और उत्तरकांड का अन्त जिसने समझ लिया वह वेदज्ञ हो गया
बालकांड में
भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥
भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका प्रभु राम के चरणों में अत्यंत प्रेम है। वे तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेंद्रिय, दया के निधान और परमार्थ के मार्ग में अत्यन्त चतुर हैं।
(माघ मास में ज्ञानियों ऋषियों का मेलापक होता है )
भरद्वाज जी ने याज्ञवल्क्य से भगवान् राम के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी, और याज्ञवल्क्य ने उन्हें शिव-पार्वती संवाद के माध्यम से रामकथा का रहस्य समझाया।
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू॥
शिव के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे राम को स्वप्न में भी अच्छे नहीं लगते। विश्वनाथ शिव के चरणों में निष्कपट (विशुद्ध) प्रेम होना यही रामभक्त का लक्षण है।
शैव वैष्णव संघर्ष को ध्यान में रखते हुए तुलसीदास यह बात कह रहे हैं ताकि उनके बीच का संघर्ष समाप्त हो जाए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्मरण कराया कि अगले अधिवेशन का मूल विषय स्वावलंबन है
भैया शशि शर्मा १९७५ द्वारा कहे गए इस वाक्य का कि आग बुझ नहीं रही है पाइप छोड़ा नहीं जा रहा है क्या प्रसंग है
भानुप्रताप जी की चर्चा क्यों हुई
उन्नाव विद्यालय का उल्लेख क्यों हुआ भैया अरविन्द जी को क्या अच्छा लगा जानने के लिए सुनें