प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४२० वां सार -संक्षेप
इन सदाचार-वेलाओं के माध्यम से आचार्यजी प्रतिदिन हमें जागरूक एवं प्रेरित करते हैं
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
, ताकि हम चिन्तन, मनन,अध्ययन, स्वाध्याय, निदिध्यासन,लेखन में रत हो सकें, हमारे जीवन में संकल्पबद्धता प्रविष्ट हो सके, संसार की सांसारिकता हमें अधिक प्रभावित न कर सके, हर ओर शान्ति का वातावरण स्थापित हो सके,हमारे भीतर संस्कार सदा जाग्रत अवस्था में बने रहें,हम अपना मनोबल प्रबल रखते हुए परिस्थितियों से बिना विचलित हुए अपने मार्ग पर चलते रहें, समाज संघर्षरत है उसमें हम डटे रहते हुए
भावसंपन्न, शक्तिसम्पन्न बनें
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।
पुरुष क्या, पुरुषार्थ हुआ न जो;
हृदय की सब दुर्बलता तजो।
प्रबल जो तुममें पुरुषार्थ हो—
सुलभ कौन तुम्हें न पदार्थ हो?
प्रगति के पथ में विचरो उठो;
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो॥
हम कलियुग में हैं इसमें नाम जप का अत्यन्त महत्त्व है
ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥
पहले (सत्य) युग में ध्यान से, दूसरे (त्रेता) युग में यज्ञ से और द्वापर में पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं, परंतु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है, इसमें मनुष्यों का मन पापरूपी समुद्र में मछली बना हुआ है
ऐसे कराल काल में तो नाम ही वह कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक के माता-पिता की तरह है
अगली पीढ़ी को हमें क्या संदेश देना है,कथावाचक मुरारीबापू, जया किशोरी आदि का उल्लेख क्यों हुआ, स्वावलम्बन का प्रभाव कैसे पड़ेगा जानने के लिए सुनें