रणभेरी सुन कह ‘विदा, विदा!
जब सैनिक पुलक रहे होंगे
हाथों में कुंकुम थाल लिए
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे
कर्तव्य प्रणय की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४२१ वां सार -संक्षेप
हमारे भीतर भावों का प्रवेश अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि भाव ही हमारे विचारों को परिष्कृत करते हैं।
सत्य ही भगवान ने उस दिन कहा,
'मुख्य है कर्त्ता-हृदय की भावना,
मुख्य है यह भाव, जीवन-युद्ध में
भिन्न हम कितना रहे निज कर्म से।'
केवल बौद्धिक विचार मनुष्य को यंत्रवत् बना देते हैं, जबकि भावनाओं से संयुत विचार उसके भीतर सरसता, कोमलता, तेजस्विता, उत्साह और जीवन्तता का संचार करते हैं।
अतः संसार के विविध प्रपंचों से घिरे रहने पर भी हमें अध्ययन, स्वाध्याय एवं लेखन के लिए समय निकालना चाहिए और देश / समाज से जुड़ी सार्थक चर्चा में अवश्य भाग लेना चाहिए। हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् l विफलताओं में अपना लक्ष्य न भूलें अपनी समस्याओं में लक्ष्य की आग न बुझने दें
जब कठिन कर्म पगडंडी पर
राही का मन उन्मुख होगा
जब सपने सब मिट जाएँगे
कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा
तब अपनी प्रथम विफलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अजय कृष्ण जी का नाम क्यों लिया हेडगेवार जी का उल्लेख क्यों हुआ, सिपाही की विदाई नामक कविता आचार्य जी ने कब लिखी थी और उस कविता की पंक्तियां क्या हैं सागर को गंगामय बनाने का क्या आशय है जानने के लिए सुनें