20.6.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण १४२२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  20 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४२२ वां सार -संक्षेप

कौन रंग देता तितलियों के परों को..

उत्तर है परमात्मा 


जिन क्षणों में यह भाव हमारे भीतर जाग्रत होता है कि परमात्मा ही सब कुछ करता है, वही कर्ता है — वे क्षण अत्यन्त आनन्ददायक होते हैं। उन क्षणों में अहंकार विलीन हो जाता है और भीतर एक अलौकिक दिव्यता का अनुभव होता है।उन क्षणों में हमें यह अनुभव होता है कि आत्म परमात्म से संयुत है

यशस्विता, धन आदि के लिए लोभ करना व्यर्थ है 

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


दैहिक, दैविक और भौतिक तापों में संयम रखना आवश्यक है  यह आत्मनियंत्रण, धैर्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का प्रतीक है।


दैहिक ताप — शरीरजनित कष्ट (रोग, पीड़ा)  

दैविक ताप — प्राकृतिक या दैविक आपदाएँ (वर्षा, अग्नि, भूकंप आदि)  

भौतिक ताप — अन्य जीवों या समाज से उत्पन्न क्लेश, हानि


सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥

धीरज धरहु बिबेकु बिचारी। छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥4॥



मूर्ख लोग सुख में हर्षित होते और दुःख में रोते हैं किन्तु धीर पुरुष अपने मन में दोनों को समान समझते हैं। हे सबके हितकारी (रक्षक)! आप विवेक विचारकर धीरज धरिए और शोक का परित्याग कीजिए

(कौशल्या/कौसल्या दशरथ को समझा रही हैं )

ये श्रीरामचरित मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि के रचयिताओं के मानस असीमित गहराई वाले हैं दुर्भाग्य से और भ्रमवश हम अपने जीवन से इन ग्रंथों को दूर किए हुए हैं हमें ऐसा नहीं करना चाहिए

ऐसे समय में धन दौलत में बहुत न फंसकर हम समाजोन्मुखता अपनाएं राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में जो हमारे कर्तव्य हैं उनका पालन करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया भरत सिंह जी भैया अजय कृष्ण जी का नाम क्यों लिया, कत्थे के व्यापारी और नाई का प्रसंग क्या है जानने के लिए सुनें