2.6.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण १४०४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 2 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४०४ वां सार -संक्षेप


भक्ति वास्तव में कोई दिखावा कोई ढोंग या केवल बाह्य आचरण नहीं, अपितु एक आंतरिक अनुभव है   

जब भक्ति अहंकार से मुक्त और सच्ची भावना से युक्त होती है, तभी वह भक्त को शक्ति देती है  वह आत्मबल, सहिष्णुता, करुणा और विवेक का एक अद्भुत स्रोत बन जाती है। इस कारण हमें भक्तिभाव की शरण में आ जाना चाहिए

मन का मृग भड़का फिरता हो 

बेतरह कुलाचें भरता हो

मेधा से तनिक न डरता हो 

डग ऊंचे ऊंचे भरता हो

तब भक्तिभाव की शरण गहो

हनुमत् चरणों को पकड़ कहो

हे महावीर हे भक्तराज है कठिन जगत का कौन काज

जो आप नहीं कर सकते हैं..

भक्तिभाव की शरण में आकर तुलसी कहते हैं


केसव! कहि न जाइ का कहिये।

देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥

सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।


धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे॥

रबिकर-नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं।


बदन-हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं॥

कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै।


तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सो आपन पहिचानै॥


भाव यह कि यह अद्भुत संसार सूरज की किरणों में जल के समान भ्रमजनित है अर्थात् मृगमरीचिका 

जैसे सूर्य की किरणों में जल समझकर उसके पीछे दौड़ने वाला हिरन जल न पाकर प्यासा ही मर जाता है, उसी प्रकार इस भ्रमात्मक संसार में सुख समझकर उसके पीछे दौड़ने वालों को भी बिना मुख का मगर यानी निराकार काल ग्रस लेता है। इस संसार को कोई सत्य कहता है, कोई मिथ्या  और कोई सत्यमिथ्या से मिला हुआ मानता है तुलसीदास के मत से तो जो इन तीनों भ्रमों से निवृत हो जाता है वही अपने असली स्वरूप को पहचान सकता है।

संसार को जितनी देर विस्मृत कर सार में जो निमग्न रहता है वह आनन्द में रहता है

किन्तु आत्मा की पूर्णता के लिए तपस्या और जीवन के आकर्षणों दोनों का समावेश आवश्यक है। केवल आत्मसंयम से आत्मा का विकास अधूरा रह जाता है; इसके लिए जीवन के विविध अनुभवों और भावनाओं का अनुभव भी आवश्यक है।

तभी कवि कहता है

तपस्वी आकर्षण से हीन कर सके नहीं आत्म-विस्तार


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया पंकज जी भैया मलय जी का आज उल्लेख क्यों किया भक्ति का सांसारिक स्वरूप क्या है जानने के लिए सुनें