मनुष्य को मनुष्यभाव का सदा विचार हो,
प्रशंस्य कार्य का सदा समाज में प्रचार हो,
न जीत का न हार का स्वशीष पर प्रभार हो
स्वदेश बंधुओं से स्वार्थमुक्त दिव्य प्यार हो।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४०५ वां सार -संक्षेप
शरीर साधन है, साध्य नहीं। यह कर्मयोग का एक अद्भुत विलक्षण अप्रतिम यंत्र है जिससे सेवा,साधना और समाज के प्रति अपने कर्तव्य निभाए जाते हैं
हमें शरीर की चिन्ता अवश्य करनी चाहिए हमें इसमें लिप्त नहीं रहना है किन्तु सचेत अवश्य रहना है इसकी उपेक्षा भी नहीं करनी है क्योंकि हमें इस शरीर से समाज -देवता की बड़ी पूजा करनी है
हम सनातनवादियों को राष्ट्र, जो हमारी तरह ही एक जीवन्त इकाई है, को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाना है
हम अनुभव करें कि हम केवल जीव नहीं हम तो तत्व,शक्ति और शौर्य का प्रतीक हैं किन्तु जब हम अपने मनुष्यत्व को भूल जाते हैं, तो उसी स्थान पर दरिद्रता, अज्ञान और पतन आ घेरते हैं।इसलिए हम अपने मनुष्यत्व को विस्मृत न करें
मनुष्य एक तत्व शक्ति शौर्य का प्रमाण है,
हरेक अंधकार बेधने में रामबाण है,
मनुष्य निज मनुष्यता समझ सका नहीं जहाँ
जहान की दरिद्रता सिमट सिमट घिरी वहाँ।
हम स्वयं अपने भीतर गुरुत्व उत्पन्न करें और इस गुरुत्व के लिए हमें संयम और नियमों का पालन करना चाहिए
सात्विक मार्ग से आगे बढ़ें
अपनी इकाई में लिप्त न हों
हमारे अन्दर परिवार भाव जाग्रत हो
यह प्रयास करें कि परिवार प्रसन्न आनन्दित रहे हम युग भारती परिवार में किसी एक सदस्य को कष्ट हो तो सबको कष्ट होना चाहिए ऐसी अपेक्षा आचार्य जी हमसे कर रहे हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
माधव ! मोह - फाँस क्यों टूटै ।
बाहिर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै ॥१॥ का उल्लेख क्यों किया
भैया मोहन भैया मनीष भैया संतोष मल्ल जी की चर्चा क्यों हुई
विद्याभारती के श्री कृष्णगोपाल जी और दीनदयाल शोध संस्थान के श्री सुरेश सोनी जी किस प्रसंग में आए जानने के लिए सुनें