प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 जून 2025 का सदाचार संप्रेषण
१४२५ वां सार -संक्षेप
आचार्य जी का सतत प्रयास रहता है कि इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से दिए गए सूक्ष्म संकेत हमारे भीतर धर्म, परम्परा एवं संस्कृति के प्रति उत्कंठा और आत्मबोध को जाग्रत करें।
वे चाहते हैं कि हम अपने ग्रंथों का अध्ययन करें, अपने साहित्यिक वैभव को पहचानें, जिसे युगों तक असाधारण मेधा, तप और साधना से सृजित किया गया है।
दुर्भाग्यवश, आधुनिक प्रवाह में हमने उस अमूल्य धरोहर की उपेक्षा की है।
अब समय है कि हम पुनः उस ज्ञान-संस्कृति की ओर उन्मुख हों,
जिसने भारत को विचार, संवेदना और चरित्र की दृष्टि से जगद्गुरु बनाया।
अब हम अपनी अमूल्य धरोहर की उपेक्षा नहीं करेंगे आज और अभी यह संकल्प लें
हम सब वैष्णव हैं हमारे भीतर सर्जन और विसर्जन का अद्भुत ज्ञान है हमारा परमात्मा की बनाई गई सृष्टि के प्रति अनुराग है परमात्मा कण कण मे विद्यमान है वैष्णवों का इस प्रकार का चिन्तन है
किसी भक्त ने कहा है
वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च ।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ॥
मैं भगवान् के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूँ । वे कल्पवृक्ष के समान सारे सात्विक व्यक्तियों की इच्छाएँ पूर्ण करने में समर्थ हैं तथा पतित जीवात्माओं के प्रति अत्यन्त दयालु हैं ।
वैष्णव जन तो तेने कहिये
जे पीड परायी जाणे रे ।
दुष्ट दूसरे की व्यथा को नहीं जानता है न जानना चाहता है वह अपनी पीड़ा का निवारण दूसरे को दंड देकर करना चाहता है
वैष्णव दूसरे की व्यथा जानने का प्रयास करता है और उसका निवारण करता है
विष्णु सर्वत्र व्याप्त हैं
विष्णुः (विष् + नुक् ) की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है
यस्माद्विश्वमिदं सर्वं तस्य शक्त्या महात्मनः । तस्मादेवोच्यते विष्णुर्विशधातोः प्रवेशनात् ll
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुरारी बापू, बाबा रामदेव,रूप मंडन, पाकिस्तान की चर्चा क्यों की विष्णु के आचार्य जी ने कौन से अर्थ सहित नाम बताए,भैया गोपाल जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें